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मोहरं चित्तघरं, मलधूवेण वासियं । सकवाडं पण्डुरुल्लोय, मणसावि न पत्थर ॥ ४ ॥ इन्दियाणि उ भिक्खूस्स, तारिसम्मि उवस्सए । दुकराई' निवारे, कामरागविवहणे ॥ ५ ॥ सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इक्कओ । परिक्के परकडे वा, वासं तत्थाभिरोयए ॥ ६ ॥ फासुम्मि अणावाहे, इत्थीहिं श्रणभिदुप | तत्थ संकर वासं, भिक्खू परमसंजए ॥ ७ ॥ न सयं गिहाई कुव्विजा, व अन्नहिं कारए । गिहकम्मसमारम्भे, सूयागं दिस्सए वहो ॥ ८ ॥ तसा थावां च, सुहुमा बादराण य । तम्हा गिहसमारम्भ, संजओ परिवज्जए ॥ ६ ॥ तहेव भत्तपाणेसु, पयरो पयावणेसु य ।
[ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र
पाणभूयद यट्ठाए, न पए न पयावए । १० ।। जलधन्ननिस्सिया जीवा पुढवीकट्ठनिस्सिया ।
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हम्मन्ति भत्तपाणेसु, तम्हा भिक्खू न पयावए ।। ११ ।। विस सो धारे, बहुपाणिविणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए ।। १२ ।। हिरणं जायरूवं च, मणसा वि न पत्थए । समले भिक्लू, विरए कयविक्कए ॥ १३ ॥ किन्तो कओ होइ, विकिकरणन्तो य वाणिओ । कविक्कम वट्टन्तो, भिक्खू न भवइ तारिसी || १४ || भिक्खियवं न केयव्यं, भिक्खुणा भिक्ववत्तिणा । कविक्कओ महादोसो, भिक्खावित्ती सुहावहा ॥ १५ ॥
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तु धारेउं । २. एगया ।