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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ]
[ १६-३
जा पहाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ सम्यमन्भहिया । जहां सुक्काए, तेत्तीस मुहुत्तमम्भहिया ॥ ५५ ॥ किरहा नीला काऊ, तिन्नि वि एयाश्रो अहम्मलेसाओ । एयाहि तिहि वि जीवो, दुग्गइ उववजइ ॥ ५६ ॥ तेऊ पहा सुक्का, तिनि वि एयाओ धम्मलेसाओ । एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइं उववज्जइ ॥। ५७ ।।
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साहिं सव्वाहिं, पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ॥ ५८ ॥ लेसाहिं साहिं, चरिमे समयमि परिणयाहिं तुः । न हु कस्सइ उववाओ, परे भवे होइ जीवस्स ॥ ५९ ॥ अन्तमुहुत्तम्मि गए, अन्तमुहुत्तम्मि सेसए चेव । लेसाही परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोय ॥ तम्हा एयासि लेसा, अणुभावं वियाणिया । अपसत्थाओ बजिता, पसत्थाओऽ हिट्ठिए मुगी ॥ ६१ ॥ ति बेमि
६० ॥
|| लेसज्झयणं समत्तं ॥ ३४ ॥
|| श्रह अणगारिज्जं गाम पंचतीसइमं अज्झयणं ॥
सुरोह मे एगग्गमणा, मग्गं बुद्धहि देसियं । जमायरन्तो भिक्खू, दुक्खाणन्तकरे भवे ॥ १ ॥ गिहवासं परिष्वज, पवजामस्सिए मुणी इमे संगे वियाणिज, जेहिं सज्जन्ति मारावा ॥ २ ॥ तहेव हिंसं अलियं, चोज अबम्भ सेवणं । इच्छाकामं च लोभं च, संजय परिवज्रए ॥ ३ ॥
१. सब्वणुदे० ।