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[ १५७
श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ]
श्रावर जिण दुरहंपि, वेयणिजे तहेव य ।
अन्तररा य कम्मम्मि, ठिई एसा वियाहिया ॥ २० ॥ उदहीसरिसनामा, सत्तरिं कोडिकोडिओ । मोहणिज्जस्स उक्कोसा, अंतोमुहुत्त जहन्निया ॥ २१ ॥ तेत्तीस सागरोवमा, उक्कोसेण वियाहिया | ठिई उ आउकम्मरूप, अन्तोमुहुत्त जहन्निया ॥ २२ ॥ उदहीस रिसनामा, वीसई कोडिकोडिओ । नामगोता उक्कोसा, अट्ठमुहुत्ता जहन्निया || २३ || सिद्धान्तभागो य, अणुभागा हवन्ति उ । सव्वेसु विपएसग्गं, सव्वजीवेसु इच्छियं ॥ २४ ॥ तम्हा एएस कम्मा अणुभागा वियाणिया | एएस संवरे चैव खवणे ज जए बुहो ॥। २५ ।। त्ति बेमि ॥ कम्पप्पयडी समत्ता ॥ ३३ ॥
|| हलेसझयणं चोत्तीसइमं अज्झयणं ।
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लेसज्झयणं पव्क्खामि श्रणुचि जहकमं । छरापि कम्बलेसा, अणुभावे सुरोह मे ॥ १ ॥ नामाई वरणरसगन्धफास परिणाम लक्खणं । ठा ठिई गई चाउं, लेसाणं तु सुणेह मे ।। २ ।। किरा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेसाय छट्ठा य, नामाई तु जहक्कमं ॥ ३ ॥ जी मूग निद्धसंकासा, गवलरिट्ठगसन्निभा । खंजजणनयगनिभा, किराहलेसा उ वराण ॥ ४ ॥
१. निज्झियं ।