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[श्रीउत्तराध्ययनसूत्र"
एगन्तरत्ते रुइरसि सद्दे,
अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स सम्पीलमुवेइ बाले,
न लिप्पई तेण मुणी विरागो॥ ३६॥ सहाणुगासागुगए: य जीवे,
__चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तहि ते परितावइ बाले,
पीलेइ अत्तगुरू किलिटे ॥ ४० ॥ सहाणुवाएण परिग्गण,
उपायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य क सुहं .
संभोगकाले य अतित्तलामे ।। ४१ ।। सद्दे अतित्ते य परिग्महम्नि,
सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहि । अतुट्टिदोसेण: दुरी परस्स.
लोभाविले प्राययई अदत्तं ।। ४२ ॥ तएहाभिभूयस्म अदत्त हारिणो,
. सद्ध अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा,
तत्थाथि दुक्खान-विमुच्चद से ॥४३॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थो य,
, ओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणिं समाययन्तो,
सद्दे अतित्तो दुहिओ अरिणस्सो॥४४॥ सहाणुरत्तस्स नरम्स एवं,
.: कत्तोसुहं होज कयाह किंचि?