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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ]
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पडिलेहणं कुणन्तो, मिहो कहं कुणइ जणवयकहं वा । देइ व पञ्चमवाणं, वाएइ सयं पडिच्छइ वा ॥ २६ ।। पुढवी पाऊकाए, तेऊ-वाऊ-वणस्सइ-तसाणं। पडिलेहणापमत्तो, छरहं पि विगहओ होइ ॥ ३० ॥ पुढवी अाउकाए, तेऊ वाऊ-वणस्तइ तसाणं । पडिलेहणााउत्तो, छरहं संरक्खओ होइ ।। ३१ ।। तइयाए पोरिसीए, भत्तं पाणं गवेसए । छण्हं अन्नयरागम्प्रि, कारण म्मि समुट्ठिए ॥ ३२ ॥ वेयण यावच्चे, इरियट्टाए य संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्मचिन्ताए ।। ३३ ।। निग्गन्थो धिइमन्तो, निग्गन्थीं वि न करेज छहिं चेव । ठाणेहिं उ इमेहिं, अणइकमणाइ से होइ ॥ ३४ ॥ पायंके उवसग्गे, तितिक्खया बम्भचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेउं, सरीरवोच्छेयगट्टाए ॥ ३५॥ अवसेसं भंडग गिज्झ, चक्खुसा पडिलेहए। परमद्धजोयणाओ, विहारं विहरए मुणी ।।३६।।। चउत्थीए पोरिसीए, निक्खिवित्ताण भायणं । सज्झायं तो कुज्जा, सम्वभावविभाव ॥ ३७ ।।। पोरिसीए चउभाए, वन्दित्ताण तओ गुरुं । पडिकमित्ता कालस्स, सेज तु पडिलेहए ॥ ३८ ॥ पासवणुच्चारभूमिं च, पडिले हिज जयं जई। काउस्लगं तो कुजा, सव्वदुक्ख विमोक्खणं ॥ ३९ ॥ देवसिय च अइयारं, चिन्तिजा अणुपुव्वसो। . नाणे य दंसणे चेव, चरित्तम्मि तहेव य ॥ ४० ॥ -~पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तो गुरुं। . ~~~~-~देवसियं तु अहयारं, आलोएज जहकम्मा ४१ ॥