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[ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र
रति पि चउरो भागे, भिक्खू कुजा वियक्खणो । तो उत्तरगुणे कुज्जा, राइम. एस चउसु वि ॥ १७ ॥ पढमं पोरिसिं सज्झायं, बीयं झालां झियावई । तया निमोवं तु, चउत्श्री भुज्ञो वि सज्झायें ॥ १८ ॥ जं जेइ जया रत्तिं, नक्खत्तं तम्मि नहचउभाए । संपत्ते विरमेजा, सज्झायं पओसकालमि ॥ १६ ॥ तमेव य न स्वत्ते, गयणच उब्भाग लाव से सम्मि | वेरत्तिंयपि काल, पडिलेहित्ता मुगी कुजा ॥ २० ॥ पुग्विलम्मिच उब्भाए, पडिले हित्तारा भण्डयं । गुरुं वन्दित्तु सभायं कुजा दुक्खविमोक्खिं ॥ २१ ॥ पोरिसीए चउभाए, वन्दित्ताण तओ गुरुं । श्रपडिक्कमित्ता कालस्स, भायणं पडिलेहर || २२ || मुहपोत्ति पडिले हित्ता, पडिले हिज गोच्छगं । गोच्छ गलइयंगुलियो, वत्थाई पडिलेहए || २३ || उड् थि अरि, पुत्रं ता वत्यमेव पडिले । तो बिदयं पप्फांडे, तइयं च पुणे पमज्जिज्जा ॥ २४ ॥ अणच्च वियं अवलियं, अणाणु धिममोसलिं चेव ।.. छरिमा नव खंडा, पाणीपाणिविसोहां' ॥ २५ ॥ आरभडा सम्प्रद्दा, वजेयब्वाय मोसली तइया । पफोडणाच उत्थी, विक्खित्ता वेश्या छट्ठी ॥ २६ ॥ पसिटिनलम्ब लोला, एम मोसा अगरूवघुणा । कुइ पातमाये, संकियो कुजा ॥ २७ ॥ अाइ रित्त पडिलेहा, श्रविवच्चासा तहेव य । : पढमं पयं पसत्थे, से साणि य अष्पसत्याइ ॥ २८ ॥ -
१ - पिमज्जणं ।