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अज्झयण ४
दसवेत्रालियसुतं
अजयं चिट्ठमाणो उ पाणभूयाइं हिंसइ । बन्धइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं || अजयं प्रासमाणो उ पाणभूयाई हिंसइ । बन्धइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ।।३।। अजयं सयमाणो उ पाणभूयाइं हिंसइ । बन्ध पावयं कम्म. तं से होइ कडुयं फलं ॥४॥ अजयं भुञ्जमाणो उ पाणभूयाई हिंसइ। . बन्धइ पावयं कम्म, तं से होइ कड्यं फलं ॥५॥ अजय भासमाणो उ पाणभूयाई हिंसइ । वन्धइ पावयं कम्प्रं, तं से होइ कडुयं फलं ॥६॥ कहं चरे ? कहं चिट्टे ? कहमासे ? कहं सए ? कहं भुजंतो भासंतो पावं कम्मं न बन्धइ ? ॥७॥ जयं चरे, जयं चिडे, जयमासे, जयं सए । जयं भुञ्जन्तोभासन्तो पावं कम्मं न बन्धइ ॥८॥ सव्वभूयप्पभूयस्स सम्मं भूयाइं पासओ। .. पिहियासवस्स दन्तस्स पावं कम्मं न बन्धइ ॥६॥ पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठइ सव्वसंजए । अन्नाणी किं काही किंवा 'नाहिइ छेयावगं ॥१०॥ सोच्चा जाणइ कल्ला सोच्चा जाणइ पावगं । उभयं पि जाणइ सोच्चा जं छेयं तं समायरे ।।१३| जो जीवे वि न याणाइ अजीवे वि न याणइ । . जीवाजीवे अयाणन्तो कह सो नाहीइ संजमं ॥१२॥ जो जीवे वि वियाणेइ अजीवे वि वियाणइ । जीघाजीवे वियाणन्तो सो हु नाहीइ संजमं ॥१३॥
१. नाही । २. सेय।