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[श्रीउत्तराध्ययनसूत्र
सव्वभवेसु अस्साया, वेयणा वेइया मए । निमेसन्तर मित्तं पि, ज साता नत्थि वेयणा ॥ ७४ ॥ तं बिन्तऽम्मापियरो, छन्देणं पुत्त ! पव्वया । नवरं पुण सामरणे, दुक्ख मिप्पडिकम्मया ॥ ७९ ॥ सो बेइ अम्मापियरो ! एवमेयं जहा फुडं । पडिकम्नं को कुणइ, अरराणे मियपक्खिणं ।। ७६ ॥ एगभूए अररणे व, जहा उ चरइ मिगे। एवं धम्म चरिस्सामि, संजमेण तवेण य ॥ ७७ ॥ जया मिगस्स आयको, महारगणमि जायइ ।। अच्छंत रुक्खमूलमि, को ण ताहे तिगिच्छइ ।। ७८ ॥ को वा से पोसहं देइ, को वा से पुच्छइ सुहं ? को से भत्तं च पाण वा, आहरित्तु पणामए ? ॥ ७९ ॥ जया से सुही होइ, तया गच्छइ गोयरं। .. भत्तपाणस्स अट्टाए, वल्लराणि सराणि य ।।८।। खाइत्ता पाणियं पाउं, वल्लरेहिं सरेहि य । मिगचारिय चरित्ताएं, गच्छद मिगचारियं ॥ ८१॥ एवं समुट्टिओ भिक्खू, एवमेव श्रेणेगए। भिगचारियं चरित्ताण, उड्ढं पक्कमई दिसं ॥ २ ॥ जहा मिए एग अणेगचारी,
अणेगवासे धुवगोयरे य। एवं मुणी गोयरियं पविटे,
नो हीलए नो वि य खिसएज्जा ।। ८३ ।। मिगवारिय चरिस्सामि, एवं पुत्ता ! जहासुहं । अम्मापिऊहिऽणुनाओ, जहाइ उवहिं तओ।।८४॥ .
१. अणिएयणे ।