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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र]
जे वजए एए सया उ दोसे,
से सुब्बए होह मुणीण मज्झे । अयंसि लोए अमयं व पूइए,
पाराहए लोग मिण तहा परं ॥२१॥ त्ति बेमि । ॥ पावसमणिज्ज समत्तं ॥ १७ ॥
॥ अह संजइज्जं अढारहमं अज्झयणं ।। कम्पिल्ले नयरे राया, उदिगणवलवाहणो । नामेणं संजए नाम, मिगव्वं उवणिग्गए ॥१॥ हयाणीए गयाणीए, रहाणीए तहेव य। पायताणीए महया, सवओ परिवारिए ॥२॥ मिए छुहित्ता हयगो, कम्पिल्लुजाणकेसरे । भीए सन्ते मिए तत्थ, वहेइ रसमुच्छिए ॥ ३॥ अह केसरम्मि उजाणे, अणगारे तवोधणे । सज्झायज्झाणसंजुत्ते, धम्मज्झा झियायइ ॥ ४॥ अप्फोवमण्डवम्मि, भायइ खवियासवे ।। तस्सागए मिए पासं, वहेह से नराहिवे ॥५॥ अह आसगो राया, खिप्पमागम्म सो तहिं । हए मिप उ पासित्ता, अणगारं तत्थ पासइ ॥६॥ अह राया तत्थ संभन्तो, अरणगारो मणाहओ। मए उ मन्दपुराणेणं, रसगिद्धण घंतुणा ॥ ७ । प्रासं विसजइत्ता, अणगारस्स सो निवो। विणएण वन्दए पाए, भगवं! एन्थ मे खमे ।। ८॥ अह मोणेण सो भगवं, अणगारे झाणमस्सिए । राया न पडिमन्तेइ, तओ राया भयददुओ ॥६॥