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[ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र
६८ ]
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पडिलेहेइ पमत्त से किंचि हु निसामिया । गुरुं परिभाव निच्च, पावसमणि त्ति वुच्चइ ॥ १० ॥ बहुमाई पमुहरी, थंद्धे लुद्धे णिग्गहे ।
संविभागी श्रचियत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चइ ।। ११ ।। विवादं च उदीरेइ. अहम्मे श्रत्तपन्न है । बुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चइ ॥ १२ ॥ अथिरासणे कुक्कुइए, जत्थ तत्थ निसीयइ | आसराम्मि अणाउत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चइ ।। १३ ।। ससरक्खपाए सुवइ, सेजं न पडिलेहइ । संथारए अणा उत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चइ ॥ १४ ॥ दुद्धदही विगईओ, हरेइ अभिक्खणं । अरए य तवोकम्मे, पावसमणि त्ति वुच्चइ ।। १५ ।। अत्यन्तम्मिय सूरम्मि, आहारेइ अभिक्खणं । चोओ पडिचोएइ, पावसमणि त्ति वुच्चइ || १६ || आयरियपरिच्चाई, परपासण्ड सेवर । गागणिए दुब्भूए, पावसमणि त्ति वुच्चइ ॥ १७ ॥ सयं गेहं परिच्चज, परदे हंसि वावरे । निमित्तेराय ववहर है, पावसमणि त्ति वुच्चइ । १८ ।। सन्नाइ पिण्डं जेमेइ, नेच्छई सामुदाणियं । गिहिनिसेज च वाहेइ, पावसमणि त्ति वुच्चइ ॥ १६ ॥ पंचकुमील संबुडे,
प्यारिसे
रूवंधरे मुणिपवराण हेट्टिमे ।
अयंसि लोए विसमेव गरहिए,
न से इहं नेव परत्थ लोर ।। २० ।।
१. परिभासए । २. श्रचियत्ते । ३ श्रत्तपयद्दद्दा । ४. ववहरे |