SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ उववाई सूक्तं nanana रिकलापंडियं जाव अलंभोगसमत्थं वियाणित्ता विउलेहिं अण्णभोगेहिं पाणभोगेहिं लेणभोगेहिं वत्थभोगेहिं सयणभोगेहिं कामभोगेहिं उवणिमंतेहिंति । तए णं से दढपइण्णे दारए तेहिं विउलेहिं अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहिं णो सजिहिति णो रजिहिति णो गिझिहिति णो मुज्झिहिति णो अज्झोववजिहिति । ___ से जहा णामए उप्पले इ वा पउमे इ वा कुसुमे इ वा नलिणे इ वा सुभगे इ वा सुगंधे इ वा पोंडरीए इ वा महापोंडरोए इवा सयपत्ते इ वासहस्सपत्ते इ वा सयसहस्सपत्ते इ वा पंके जाए जले संवुड्ढे णोबलिप्पइ पंकरएणं णोवलिप्पड़ जलरएण, एवामेव दढपइण्णे वि दारए कामेहिं जाए भोगेहिं संवुड्ढे णोवलिप्पिहिति कामरएणं णोवलिप्पिहिति भोगरएणं णोवलिपिहिति मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणेणं। से णं तहाख्वाणं थेराणं अंतिए केवल बोहिं बुझिहिति २ ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइहिति।
SR No.022612
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChotelal Yati
PublisherJivan Karyalay
Publication Year1936
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy