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________________ [६७] रेसे बहत विरोध है । जो बातें उनके प्राचीन ग्रंथोंमें नहीं हैं, वह अर्वाचीन ग्रन्थों में हैं । किन्तु दिगम्बर शास्त्रोंमें ऐसी बात नहीं है। उनमें प्राचीन घटनाक्रममें किंचित भी भेद नहीं मिलता है। श्वे. ग्रंथोंमें सर्व प्राचीन कल्पसूत्र हैं; और उसमें भगवानके विवाह करनेका उल्लेख बिलकुल नहीं है, परन्तु किन्हीं दिगम्बर जैन शास्त्रोंसे भी उपरांतके रचे हुए श्वे शास्त्रोंमें भगवानके विवाह करनेका उल्लेख है । यह संभवतः श्वे. दि के पारस्परिक सांप्रदायिक विद्वेषके परिणाम स्वरूप है । अस्तु; जो हो यहांपर श्वेतांबरोंके ग्रन्थोंमें जो परस्पर भेद है उसको भी प्रगट कर देना अनुचित न होगा। कल्पसूत्रमें (१४९-१६९) विवाहके अतिरिक्त भगवानके पूर्वभवोंका भी उल्लेख नहीं है । उसमें श्वेताम्बर शास्त्रों में कमठ और नागरान 'धरण' (धरणेन्द्र) परस्पर विशेष का भी निकर कहीं नहीं है। शेष माता अन्तर है। पिता, जन्म, नगर, आयु आदिमें अन्य . चरित्रोंमें समानता है । किन्तु भावदेवसूरिनीके चरित्र और कल्पसूत्रमें जो उनके शिष्योंका वर्णन दिया है, उसमें विशेष अन्तर है। कल्पसूत्रमें आठ गण और आठ गणधर(१) आर्यघोष, (२) शुभ, (३) वशिष्ठ, (४) ब्रह्मचारिण, (६) सौम्य, (६) श्रीधर, (७) वीरभद्र, (८) और यशप्स लिखे हैं । भावदेवसूरिने दश गणधर-(१) आर्यदत्त, (२) आर्यघोष, (३) वशिष्ठ, (४) ब्रह्मनामक, (५) सोम, (६) श्रीधर, (७) वारिषेण, (८) भद्रयशस, (९) जय, (१०) और विनय बताये हैं । (६)
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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