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________________ [३०] हुये।' भागवतमें स्पष्ट रीतिसे इन ऋषभदेवको स्वयं भगवान् कैवज्यपति लिखा है । तथा उनको दिगम्बर वेष और जैनधर्मका चलानेवाला बतलाया है। इस उल्लेखसे प्रगट है कि सृष्टि के प्रारम्भमें, जैसे हिन्दू मानते हैं, जब ब्रह्माने स्वयंभृमनु और सत्यरूपाको उत्पन्न किया तो ऋषभदेव तब उनसे पांचवीं पीढ़ीमें हुये और "पहले सतयुगके अन्तमें हुये और २८ सतयुग इस अरसे तक व्यतीत होगये ।" इस प्रकार ऋषभदेवका अस्तित्व एक अतीव प्राचीनकालमें प्रगट होता है और यह सर्वमान्य है कि भागवतोक्त ऋषभदेव ही जैनोंके प्रथम तीर्थकर है। उनके मातापिताका नाम और शेष वर्णन भागवतमें भी प्रायः वैसा ही है जैसा जैनशास्त्रोंमें है । भागवतके अतिरिक्त 'वराहपुराण' और 'अग्निपुराण' में भी ऋषभदेवका उल्लेख विद्यमान है। प्रभासपुराण' में तो केवल ऋषभदेवका ही नहीं बल्कि २२वें तीर्थकर श्री नेमिनाथनीका उल्लेख भी मौजूद है। इनके अतिरिक्त हिंदू 'पद्मपुराण' में वेदानुयायी राजा वेणके जैन होनेका वर्णन मिलता है । जब वह राज्य कररहे १-भागवत स्कन्ध ५ अ० ३-६ । २-भागवत स्कन्ध २ अ० ७ (व्यकंटेश्वर प्रेप) पृ० ७६ । ३-जिनेन्द्रमत दर्पण भा० १ पृ० १० । ४-हिन्दी विश्वकोष भा० ३ पृ. ४४४ और डॉ. स्टीवेन्सन, कल्पसूत्रकी भूमिका पृ० १६ । ५-तस्य भरतस्य पिता ऋषभः हेमादक्षिणं वर्ष महद्भारतं नाम शशास। ६-ऋषभो मरुदेव्याग्न ऋषभादूभरतोऽभवत् । भरताभारतं वषे भरतात्समीतस्त्वभूत् ॥ ७-कैलाशे विमले रम्ये वृषभोऽयं जिनेश्वरः । चकार स्वावतारं च सर्वज्ञः सर्वगः शिवः ॥ ५९ ॥ 8वतादौ जिनो नेमियुगादिविमलाचले । ऋषीणां या श्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम् ॥
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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