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श्री मंगल-पिन । वामा प्यारे हैं, हिये मध्य आके, वारो सारी शृंखला, ज्ञान लाके जागे मेरी बुद्धि, गाऊँ तुम्हारेनीके नीके सद्गुणोंको निहारे !
प्रेमासक्ता इन्द्र चक्राधि सारे, माके तेरे हैं गुणोंको अपारे ! वैसे पाऊँ पार मैं नार्थ गाके
बौने पाते हाथ कैसे बढ़ाके !! तौभी स्वामी आपमें प्रेम साने, बैठा गाने गीत हूं मैं अज्ञाने ! सेवा तेरे पादकी भक्ति धारे ! हे, तीर्थेश्वर पार्श्व ! तेरे सहारे !
दाया कीजे हे प्रभो हो दयाला! दीजे बोध हे विभो हो कृपाला !! जावे बाधा भाग सारी, उदारो! पाऊँ तेरा 'दर्श' भौसिन्धु तारो!
-लेखक ।
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