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________________ ३९८ ] भगवान् पार्श्वनाथ | अतएव ऐसा कोई साधन उपलब्ध नहीं है, जिससे यह स्वीकार किया जासके कि भगवान पार्श्वनाथजीक संघ में वस्त्रधारी अवस्था के निग्रंथ मुनि थे और भगवान स्वयं वस्त्रधारण किये रहे थे; जैसे कि ० का कथन है | o तीसरी और चौथी बातों में कुछ तथ्य अवश्य है । यह निर्वि बाद सिद्ध है कि भगवान महावीरजीके प्रारंभिक जीवन तक अव शव ही भगवान पार्श्वनाथजीका संघ मौजूद था । किन्तु ज्यों ही नवीन संघ उत्पन्न हुआ त्योंही प्राचीन संघ के ऋषि उसमें मिल गये थे । उनमें विशेष अन्तर नहीं था और वह भगवान महावीर जीकी बाट जोह रहे थे, यह हम देख ही चुके हैं । चातुर्याम् नियम जो दोनों संघों में समान बतलाया जाता है, वह उसी रूपमें एक माना जाता है निमरूपमें वह सामन्नफल सुत्तमें मिलता है । जैन श्रमणके वही चार लक्षण थे जो इस बौद्धसुत्तमें बताए गये हैं, जैसे कि हम पहले देख चुके हैं । यह बात दि० जैन ग्रन्थ 'रत्नकरण्ड श्रावकाचारसे प्रमाणित है, यह पहले ही दिखाया जाचुका है । अतएव यह कहना कि बौद्धोंने महावीरस्वामीके प्रति जिस चार्तुयाम संवरका निरूपण किया था वह गलत है कुछ तथ्य नहीं रखता ! भगवान महावीर के समकालीन न बुद्धमे ऐसी गलती होना असंभव ही है। बौद्ध शास्त्रोंमें जिन सिद्धांतोंको "नोंका बतलाया गया है वह हमें ठीक हैं; यद्यपि उनकी व्याख्या करने में कहीं२ बौद्धोंने अत्युकिसे काम लिया है। इसलिए यह नहीं स्वीकार किया जासक्ता कि भगवान पार्श्वनाथनीके निकट चातुर्याम नियमका भाव चार १- भगवान महावीर और म०. बुद्ध, परिशिष्ट ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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