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________________ ३९६ ] भगवान् पार्श्वनाथ | : इस व्याख्याका समर्थन अब तकके उपलब्ध जैन पुरातत्वसे भी होता है । इस समय भगवान पार्श्वनाथजीकी संभवतः सर्वप्राचीन मूर्तियां जैन सम्राट् खारवेल महामेघवाहन (ईसा से पूर्व २य शताब्दि ) द्वारा निर्मित खंडगिरि-उदयगिरिकी गुफाओं में मिलती हैं और यह नग्नष में हैं । इससे स्पष्ट है कि आजसे इक्कीससौ वर्ष पहले भी भगवान पार्श्वनाथजी ननवेषमें ही पूजे जाते थे । इस समय दिगम्बरश्वेतां प्रभेद भी जैन संघमें नहीं हुये थे। इसके बाद कुशानकाल (Ind-Scythian Period) की मथुरावाली मूर्तियों में भी भगवान पार्श्वकी मूर्तियां नग्नवेषमें मिली हैं। आश्रर्य यह है कि इनमें से एक श्वेताम्बर आयागपट में भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन मूर्ति नग्न ही हैं । इसमें कान्ह श्रमग एक खंड- वस्त्र ( अंगोछे ) I को हाथकी कलाई पर लटका कर नग्नताको छुते हुये प्रगट किये गये हैं। वैसे वह संपूर्णतः नग्नवेष में हैं। श्वेताम्बर संप्रदाय के साधुओं की तरह उनके पास अभ्यन्तर और बहिरवस्त्र नहीं हैं और न उ नरहके एकवस्त्रधारी साधु ही हैं, जैसे कि श्वे० संप्रदाय में माने जाते हैं । ३३० संप्रदाय के अनुसार खंडवस्त्रधारी तीर्थंकर भगवान एक प्राचीन चित्रमें लंगोटी लगाये दिखाये गये हैं । इस अव यह कान्हभ्रमण पूर्ण श्वेताम्बर साधुकी कोटिमें नहीं आते है । उनका स्वरूप भट्टारक रत्ननन्दि कृत 'भद्रबाहु चरित' में बताये हुए 'अर्ध फालक' (अर्धवस्त्र) वाले जैन साधुओंसे ठीक मिलता है । हारक रत्ननन्दिने श्रुतकेवली भद्रबाहुनीके समय में शिथि १ # न १- सूत्र (S. B. E) भाग १ पृ० ७१-७२ । २ - जू जैनिसमस प्लेट नं० ८ ३ - भगवान महावीर पृ० २२७ । ४ जैनहितैषी भाग १३ पृ० २६६ ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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