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________________ ३७८] भगवान पार्श्वनाथ । एकवार वन्दना करनेसे ही दुर्गतिका वास छूट जाता है। इस तरह भगवानके पवित्र निर्वाण धामका परिचय है। ___भगवानके निर्वाण कल्याणकके दिग्दर्शन करके प्रत्येक हृदय अपनेको क्रत ऋत्य मानता है । इस परिच्छेदमें उसोके परोक्षदर्शन होरहे हैं और यह आत्म-कल्याणका प्रकट कारण है। इसके स्मरण मात्रसे ही सुखोंकी प्राप्ति होती है; क्योंकि जिनेन्द्रदेवकी भक्ति सर्व सुखोंको प्रदान करनेवाली है । इसलिए श्री जिनेन्द्र भगवान पार्श्वनाथजीके प्रति वारम्बार नमस्कार है । (२५) তালু ঘুমুল জীহ মুৱাৰীবাসী, “पार्श्वेशतीर्थसन्ताने पंचशदद्विशताब्दके । तदभ्यन्तरवार्युमहावीरोत्र जानवान् ॥ २७९ ॥" -उत्तरपाण । भगवान् पार्श्वनाथजीको मुक्तिलाभ होगया; किन्तु फिर भी उनका तीर्थ महावीर स्वामीके जन्म समय तक चलता रहा । भगवान् पार्श्वनाथसे महावीर स्वामी ढाई सौ वर्ष बाद हुये थे। इस अन्तराल कालमें उनकी आयु भी गर्भित थी। भगवान् पार्श्वनाथः वर्तमान युगके २३ वें तीर्थङ्कर थे और भगवान महावीर २४ वें अथवा सर्व अन्तिम तीर्थंकर थे। प्रत्येक युगमें सनातन रीतिसे चौवीस तीर्थंकर होते हैं । इनका परस्पर संबंध जाहिरा कुछ नहीं होता ! यह एक समान महान् पुरुष होते हैं । इसीतरह भगवान पार्श्वनाथ भी एक जीवित परमात्मा थे और अनुपम थे। और महावीर
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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