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________________ ३७६ ] भगवान पार्श्वनाथं । 'पहले सम्मेदशिखर के दर्शन होगये थे । अस्तु; यह मानना ठीक है कि आजकलका सम्मेदशिखर या पारसनाथ हिल ही प्राचीन सम्मेदाचल है । ० भगवान् पार्श्वनाथके निर्वाणस्थान होनेकी अपेक्षा ही सम्मेदशिखिर अधुना पारसनाथ हिलके नामसे प्रख्यात है । यह विहारओड़ीसा प्रान्तस्थ छोटेनागपुर के हजारीबाग में २३ - ९८' उत्तर और ८६ - ८' पूर्व अक्षरेखाओंपर स्थित है । क्रूकसाहब इसकी प्रशंसा इन शब्दों में करते हैं कि - "पर्वत संकीर्ण पर्वतमाला से वेष्टित है, जिसमें अनेक शिखरें हैं । यह पर्वतमाला अर्धचंद्राकार है और सबसे ऊंची चोटी ४४८० फीट की है । यह जैनियोंके तीर्थस्था-नोंमेंसे एक है। जैनी इसे सम्मेदशिखिर कहते हैं । इस पर्वत पर से बीस तीर्थंकर मोक्ष हुये बतलाये जाते हैं । इसका 'पारसनाथहिल' नाम २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथकी अपेक्षा ही पड़ा है। जैन संप्रदायकी जो एकान्तवासकी प्रकृति है उसीके अनुसार उनने इस निरापद स्थानको जिसके प्राकृत सौन्दर्य को देखते हुये ठीक ही अपना पवित्रस्थान माना है । मधुपुरसे चलकर जब तीन मील पर्वतपर चढ़ जाते हैं तो झट एक मोड़के साथ ही जैनमंदिर दृष्टि पड़ने लगते हैं। यहां से मंदिरोंकी तीन पंक्तियां एक दूसरे के ऊपर स्थितसी नजर पड़ती हैं; जिनमें करीब पन्द्रह चमकती हुई शिखिरें दिखाई देती हैं । इन शिखरों पर सुनहले कलशे चढ़े हुये रहते हैं तथापि श्वेतांबरों के मंदिर में लाल और पीली ध्वजायें फहराती रहती हैं । यह सब ही पर्वत के श्यामवर्ण में सफेद महलोंका चमकता हुआ बड़ा समुदाय ही दीखता है। यहां तीन मुख्य मंदिर हैं.... (एक पार्श्व
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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