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________________ विद्युच्चर मुनि । ~ (२२) विद्युच्चर मुनि। "सर्वसौख्यप्रदं नत्वा जिनेन्द्रं भुवनोत्तमम् । वक्ष्ये विद्युञ्चराख्यानं विख्यातं मुनिभाषितम् ॥" -ब्रह्मनेमिदत्त । मिथिलानरेश वामरथ अपने एकांत भवनमें बैठे हुये थे। आनन्द वार्ता होरही थी । सामने ही सुन्दर वेषभूषाको धारण किये हुये एक पुरुष उपस्थित था। वह महारानको मन मोहनेवाली बातें सुना रहा था। बातों ही बातों राजाका हार लेकर बह चम्पत होगया ! सब लोग देखते ही रह गये ! इस घटनासे मिथिलानरेशको बड़ा रोष आया ! उन्होंने अपने यमदण्ड नामक कोतवालको बुला भेना और सात दिनके अन्दर चोरका पता लगा लानेकी आज्ञा चढ़ादी ! ____ यमदण्ड परेशान था। वह अपने जानेमें चोरको खोज निका•लनेके लिए जमीन आस्मान एक कर चुका था; पर तो भी पता लगानेमें सफल न हुआ था ! छै रोज होचुके थे-दूसरे ही रोज रान दरबारमें चोरको हाज़िर करना था ! वह इसी फिराक में नगरके बहार निकला ! यूं ही एक सूनसान मंदिरमें वह जा निकला। वहां उसने एक कोढ़ींको पड़ा पाया ! कोतवालको उसपर कुछ शक हुआ और वह उसको पकड़ लाया ! दूसरे रोज़ राजदरबारमें उसी कोढीको उपस्थित करके कह दिया कि 'महाराज, आपका चोर यही है।' कोतवालने उसको चोर तो बता दिया; परन्तु उसके पास कोई प्रमाण नहीं था, जिससे वह उसे चोर सिद्ध कर सक्ता ! दरबारियोंकी
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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