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________________ महाराजा करकण्डु । [३४९ ब्राह्मणने सुन ली, सो वह उन वांसोंको उसी समय काट लेगया और पीछे किसीप्रकार करकंडुने उससे उन्हें ले लिया।" उन बांसोंको करकंडुने क्या लिया, सचमुच वहांका राज्य ही उनके हाथोंमें आगया ! कुछ दिनोंमें वहांका राजा कालके गालमें जा फंसा ! वह पुत्रहीन था-उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। नगरभर हाहाकार करने लगा था। (सुनामुहाहारउट्ठिउ पुरवरम्मि, 'अइदुखु पविहिंउनणवयम्मि) इससमय एक राजाकी खोनमें पाटवड हाथी छोड़ा गया था । वह हाथी करकंडुको ही अपनी पीठपर बैठाकर नगरमें ले आया था । (णिझर झरंतमय गिल्लांडे करकंडु चड़िउ ताकरि पयंडे । कविलीला मणहरं पह वहेइं-णं मुखइ अहरावई सहेई) नगरवासियोंने इसपर करकंडुको अपने नगरका राजा बना लिया और खुब आन्नद मनाया था। ___करकंडुराना होगये -उनको वैभवकी प्राप्ति हुई ! उन्हीके साथ बालदेवकी भी विद्या सिद्ध होगई । महापुरुषों का सत्संन सदा सुखदाई होता है । वह विद्याधर प्रसन्नतापूर्वक करकंडु को नमस्कार करके अपने निवासस्थान विजयाईको चला गया। इधर करकंडु आनन्दसे राज्य करने लगे। १-पुण्याश्रव कथाकोष पृ०२१-२२१२-मुनि कणयामर विरचित करकंडु चरित'में यहांपर कनौजके एक राक्षसका आख्यान और दिया है, जिसने करकंडुकी सेवा स्वीकार की थी। तथापि बनारसके एक वणिकका भी उल्लेख है; यथा:"वाणमरसिणयर हो मित्तवेवि, देसत्तरुगय आणाणतेवि । धणु अजिवि आवहि बलिविजाम, ता अंतरि रक्खसु रिठ्ठताम । सो परिकविते भयभीवणटठ. पाविट्ठ जेमतव चरण भह । णउ मुणहिं किं हिमवए अवाण, ते पाविएतेण पलायमाण । वणारसि णयरि मणांहिरासु, अरिविंदु णराहिउँ अत्थि णामु”
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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