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________________ ३४४] भगवान पार्श्वनाथ । . हो गया। हाथी रोषमें भरा हुआ जाकर एक तालाबमें घुम पड़ा और यही मालूम हुआ कि रानी पद्मावतीको वह पानीमें डुबो ही देगा; किन्तु यहां ठीक मौकेपर रानीका पुण्य सहायक होगया। वनदेवीने प्रकट होकर रानीको उस तालाबके निकटवाले सुरम्य उपवनके एक वृक्षके तले बैठा दिया ! यह उपवन दंतिपुर नगरके निकट था, यह भी 'करकंडुचरिय' में लिखा है; यथाः"ता दिहउ ऊववणु खरुख्कु । मयरहियउणी रसुणायमुखु ॥ तहिं रुकहो तले वीसमइ जाम। णंदणुवणु फुल्लिउ फलिउ ताम॥ ता दंतीपुरि केणविविचित्त । भड मालिहि अग्गह कहिय वत्त॥ xx x तें तरु तलित तलि दिहीदिव्यवालाणवणसिरिसोहई गुणवमाल।। पुणु चिंतइ णउ सामण्ण एह । रुवेण अउछी दिव्बदेह ॥" इनसे यह भी प्रकट होता है कि उप्त उपवन में बैठी हुई पद्मावतीको वहांके भट नामक मालीने देखा था। वह उसको देखकर आश्चर्यमें पड़ गया था । रानीकी दिव्य देहको देखते हुये वह सहसा यही न निश्चय कर सका कि वह यक्षी है अथवा कोई राजपुत्री है । आखिर वह माली उसके निकट आकर सब हाल पूछने लगा और सब हाल सुनकर उसने रानीको सान्तवना दी। उपरांत वह रानीको अपने घर लिवा लेगया । उसने दुःखीजनोंको आश्रय देना अपना कर्तव्य समझा और उसने रानीको बड़ी होंशियारीसे अपने यहां रहने दिया ! उसका यह सुवर्ण कृत्य भारतीय -सभ्यताके आदर्शका एक नमूना था । दुःखी और अबला जनकी सहायता करना सचमुच एक खास धर्म है; किन्तु आजके भारतमें
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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