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________________ v ३४०] भगवान पार्श्वनाथ । सुनकर जैनधर्ममें श्रद्धान किया ! इधर जब भगवान् पार्श्वनाथनीके समवशरणके नागपुरी पहुंचनेका समाचार बन्धुदत्तको मालूम हुये, तो वह बड़े मोदभावसे भगवान् की वन्दना करनेको गया । वन्दना करके उसने भगवान् से अपने पूर्वभव सुने और वह अत्यन्त हर्षित हुआ । उपरान्त उसने भगवान्के धर्मोपदेशको सुना और उनसे पंचव्रतोंको गृहण किया। भगवान के मुखसे यह सुनकर कि वह और उसकी पत्नी दूसरे भवसे मोक्षलाभ करेंगे, उसे बड़ा ही संतोष हुआ! वह भगवान्को नमस्कार करके घर लौट आया और धर्ममय जीवन व्यतीत करके सहस्रार स्वर्गमें जाकर देव हुआ ! जैनधर्मकी कृपासे उसे स्वर्गसुखोंकी प्राप्ति हुई ! सत्धर्म सदा ही सुखदाई होता है ! इसप्रकार भगवान्के समयके दो सेठ-पुत्रोंके दर्शन करके हम शेषमें उनके तीर्थके कतिपय अन्य मुख्य व्यक्तियोंका दिग्दर्शन करेंगे और फिर भगवान्का मोक्षकल्याणकका दिव्य वर्णन देखकर उनका भगवान् महावीरजीसे जो सम्बन्ध था, उसको प्रकट करेंगे । महाराजा करकृण्ड "तहिं देसिरवण्णई धणकरण पुण्णई, अछिणयरि सुमणोहरिय! जण णयण पियारी महियलसारी, चंपाणामइ गुणभारिय॥३॥" xx 'तहिं अरि विदारणु भयतरु वारणु धाडीवाहणु पहु हुयउं।" -मुनि कणयामर ! राजा दन्तिवाहन उस भुवनमोहिनी युवतीकी ओर एकटक निहारते ही रह गये । वह उसकी अतुलरूप राशिपर विमुग्ध हो
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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