________________
[<]
प्रसिद्ध राधास्वामी महर्षि श्री शिवव्रतलालजी वर्मन एम० ए०, एल० एल० डी० श्री पार्श्वनाथका अस्तित्व स्वीकार करके कहते हैं कि " जैनियोंमें से कोई पार्श्वनाथकी पूजा करता है, कोई महावीरस्वामीकी, इन सबमें मतभेद बहुत कुछ नहीं है ।"" श्री डॉ० वेनीमाधव बारुआ डी० लिट० भी श्री पार्श्वनाथजीको महावीरस्वामीका पूर्वागामी तीर्थंकर स्वीकार करते हैं । "
इस तरह पर भारतीय विद्वानों की दृष्टिमें भगवान् पार्श्वनाथ एक वास्तविक महापुरुष प्रमाणित हुये हैं । यही हाल पाश्चात्य विद्वानोंका है । उनमें बहुप्रसिद्ध प्रो० डॉ० हर्मन जैकोबीके मन्तव्यपर ही पहले दृष्टिपात कर लीजिये । उन्होंने " जैनसूत्रों " की भूमिका में जैन धर्मको बौद्धमतसे प्राचीन सिद्ध करते हुये लिखा है कि "पा एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे, यह बात अब प्रायः सबको स्वीकार है । "
(That Parsva was a historical person, is now admitted by all, as very probable. Jaina Sutras. S. B. E. XLV. Intro. p. XXI).
इसी व्याख्याकी पुष्टि डॉ० जार्ल चारपेन्टियर पी० एच० डी० " उत्तराध्ययन सूत्र” की भूमिका (ष्ट० २१) में निम्न शब्दों द्वारा करते हैं:
"We ought also to remember both that the Jain religion is certainly older than Mahavira, his reputed predecessor Parsva having almost certainly existed as a real person, and that, consequently, the main points of the original doctrine may have been codified long before Mahavira. " ( The Uttra dhyayan Sutra, Upsala ed Intro. P. 21).
१ - जैनधर्मका महत्व पृ० १४ । २- हिस्ट्री ऑफ दी प्री० बुद्धिस्टिक इन्डियन फिलासफी पृ० ३७७ ।