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________________ २३४] भगवान पार्श्वनाथ ।.. साथ एक समय जैनधर्मानुयायी थे, यह भी प्रगट है। परन्तु यह साकल और राजा मनेन्द्र अथवा मिलिन्द आदि भगवान् पार्श्वनाथसे एक दीर्घकाल उपरांत भारतीय इतिहासमें स्थान पाते हैं। इसलिये उक्त शास्त्रका शाकदेश साकल नहीं होसक्ता है । इसके अतिरिक्त भारतके बाहर शाकद्वीप (Sythia) में भगवान पार्श्वनाथका विहार हुआहो, तो कोई आश्चर्य नहीं है, क्योंकि प्राचीनकालमें भारत और शाकद्वीपका विशेष सम्बंध था। लोगोंका कहना है कि कृष्णके पुत्र शम्ब शाकहीपसे आये थे और वह अपने साथ शाकद्वीपस्थ ब्राह्मणोंको भी लाये थे जो सूर्यकी उपासना करते थे । यही ब्राह्मण आजकलके भोजक हैं,जो जैन सम्प्रदायमें विशेष परिचित हैं । तिसपर मध्य ऐशिया और यूनान तक जैनधर्मके अस्तित्वके चिन्ह मिलते हैं । इसलिये यह भी अनुमान किया जासक्ता है कि भगवानका विहार शाकद्वीपमें हुआ हो, जो जैन दृष्टिसे आर्यखण्डमें आजाता है । अब सिर्फ दक्षिण देशोंके प्रदेश रहे हैं । जैन शास्त्रोंमें यहां भगवान पार्श्वनाथके बहुत पहलेसे जैनधर्मका अस्तित्व बतलाया गया है। किन्तु आजकलके विद्वानोंको ऐसी धारणा होगई है कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौके जमाने में श्रुतकेवली भद्रबाहु द्वारा ही सर्व प्रथम वहां जैनधर्मका प्रचार हुआ था । इस धारणामें कुछ अधिक वजन है यह दिखता नहीं, क्योंकि जैनेतर शास्त्रोंसे वहां इस कालके बहुत पहलेसे जैनधर्मका प्रचलित होना प्रतिभाषित होता है । तिसपर स्वयं भद्रबाहुस्वामीकी घटनासे ही यह बात प्रमाणित है। १-'वीर' वर्ष २ पृ० ४१३ । २-टॉडका राजस्थान (वकेटेश्वर प्रेस) भा० १ पृ. २७ ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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