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विशद चरित्र लिखा हुआ मिलता है। इन्हीं ग्रंथोंके आधारसे एवं
अन्य जैनेतर शास्त्रों और ऐतिहासिक साधनों द्वारा यह पुस्तक लिखी गई है । इसमें जो कुछ है वह सब पुरातन है; केवल इसका रूप-रंग और वेश-भूषा आधुनिक है। शायद किन्हीं लोगोंकी अब भी यह धारणा हो कि एक पौराणिक अथवा कामनिक पुरुषकी जीवनीमें ऐतिहासिकताकी झलक कहांसे आसक्ती है ? और इस मिथ्या धारणाके कारण वह हमारे इस प्रयासको अनावश्यक समझें ! किन्तु उनकी यह धारणा सारहीन है। प्रभु पार्श्व कोई काल्पनिक व्यक्ति नहीं थे । पौराणिक बातोंको कोरा ठपाल बता देना भारी धृष्टता और नीच कृतघ्नतासे भरी हुई अश्रद्धा है । भारतीय पुराणलेखक गण्यमान्य ऋषि थे । उन्होंने कोरी कवि कल्पनाओंसे ही अपने पुराणग्रन्थों काला नहीं किया है; जबकि वह उनको एक 'इतिहास' के रूपमें लिख रहे थे। वेशक हिंदू पुराणों में ओतप्रोत अलंकार भरा हुआ मिलना है; परन्तु इसपर भी उनमें ऐतिहासिकताका अभाव नहीं है। तिस्तपर जैनपुराण तो अलंकारवादसे बहुत करके अछूते हैं और उनमें मौलिक घटनाओंका समावेश ही अधिक है। उनकी रचना स्वतंत्र और यथार्थ है । किसी अन्य संप्रदायके शास्त्रोंकी नकल करने का आभास सहसा उनमें नहीं मिलता है । साथ ही वे बाचीन भी हैं। मौर्य सम्राट चंद्रगुप्तके समयसे जैन वाङ्मय नियमितरूपमें
१-पुराणमितिवृत्तमाख्यायिकोदाहरणं धर्मशास्त्रमर्यशास्त्रं चेतिहास:-कोटिल्य । २-रेपसन, एन्शियेन्ट इन्डिया पृ० ७० । ३-जैनसूत्र S. B. XXII. Intro-P. IX.