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________________ २३२] भगवान् पार्श्वनाथ । .. स्पष्ट नहीं है कि किस शाकदेशका भाव यहांपर इष्ट है ? भारतमें म० बुद्धका वंश 'शाक्य ' नामसे प्रसिद्ध है और उनका देश भी 'शाक्यभूमि' से परिचित है । संभव है, भगवान पार्श्वका विहार यहींपर हुआ हो। यह प्रदेश नेपालको तराईमें था और नेपालकी कथानकसे भी ऐसा प्रकट होता है कि भगवान पार्श्वका आगमन वहां हुआ था । उसमें कहा गया है कि काश्यप बुद्ध बनारससे आये थे और स्वयंभू मंदिरमें रहकर उनने उपदेश दिया था। फिर वह गौड़ देश (बंगाल) को चले गए थे। वहांके प्रचण्ड देव नामक राजाने उनको पिण्डपात्र दिया था। बुद्धने उनसे स्वयंभूक्षेत्र ( नेपाल ) जानेको कहा था। सो वह अपना राज्य अपने पुत्र शक्तिदेवको देकर भिक्षु होगया था और शास्त्राध्ययन करने लगा था । उपरांत वह नेपाल गया और शांतिकर नामसे परिचित हुआ। यहां भगवान पार्श्वनाथका उल्लेख गोत्ररूप ( काश्यप ) में किया गया है। उनका बनारससे आना और बंगालको जाना स्पष्ट कर देता है कि सचमुच काश्यप बुद्ध भगवान पार्श्वनाथ ही होंगे; क्योंकि भगवानने धर्मोपदेश बनारससे ही देना प्रारम्भ किया था और वे बंगालमें भी गये थे, यह प्रगट है । आजकलकी खोजसे यह प्रमाणित हुआ है कि श्री पार्श्वनाथनीके धर्म तथा उपदेशका असर अंग-बंग और कलिंगमें फैला हुआ था । भगवान् ताम्रलिप्तसे चलकर कोपक अथवा कोप कटक पहुंचे थे; जो उनके वहां पिण्ड-आहार ग्रहण करनेके कारण उपरांत धन्य कटक कहलाने लगा था और जो आजकलका कोपारी १-हिस्टरी आफ नेपाल पृ० ८३-८४।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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