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उस समयकी सुदशा। [४७ संसर्गको बुरा नहीं समझते थे; जैसे कि हम अगाड़ी देखगे । सचमुच ब्रह्मचर्यकी महत्ता लोगोंके दिलसे कम हो चली थी। इसके साथ ही लोगोंको अपनी जाति और कुलका बड़ा घमण्ड था। विप्रोंके प्राबल्यसे इतर वर्गों के लोगोंके मनुष्यके प्रारंभिक हक भी अपहरण कर लिये गये थे। ___ जैन शास्त्रोंके कथानक भी इन बातोंकी पुष्टि करते हैं । सम्रा श्रेणिकके पुत्र अभयकुमारके पूर्वभव बतलाते हुए इस जातिमदका खुला विरोध ग्रन्थकारको करना पड़ा है। उस समय भी जैनी मौजूद थे, यद्यपि यह अवश्य था कि, उनमें भी समयानुसार शिथिलता प्रवेश कर गई थी। परन्तु वह अपने सम्यक्त्व-आप्त, आगम, पदार्थके स्वरूपके समझनेसे च्युत नहीं हुए थे, यह बात कुमार अभयके पूर्वभव कथनके निम्न अंशसे स्पष्ट है। भगवान महावीरके समवशरणमें पूज्य गणधर इन्द्रभूति गौतमने इस सम्बंधमें कहा थाः
__ पूर्व भवमें तू (अभयकुमार) एक ब्राह्मणका पुत्र था और वेद पढ़नेके लिये देश विदेशमें फिर रहा था। इसी भ्रमणमें तेरा साथ एक जैनी पथिकसे होगया था। देवमूढ़ता आदिको उसके सहवाससे तूने छोड़ दिया था । “तदनंतर वह जैनी उसकी जातिमूढ़ता दूर करनेके लिए कहने लगा कि गोमांस भक्षण तथा वेश्यादि सेवन, न करने योग्यों का सेवन करनेसे व्यक्ति क्षणभरमें पतित हो जाता है । इसके सिवाय इस शरीरमें वर्ण वा आकारसे कुछ भेद भी दिखाई नहीं पड़ता और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्योंमें शूदोंसे भी
१-हमाग ‘भगवान महावीर और म० बुद्ध' पृ० ४३ । २-उत्तरपुराण पृ. ६९५ ।