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भगवान पार्श्वनाथ । उस समयकी सुदशा! "कौशाम्ब्यां धनमित्राख्य-धनदत्तादयो मुदा । वाणिज्येन वणिक्पुत्रा निर्गता सजगेहकम् ॥"
-आराधना कथाकोष । कौशाम्बीसे राजगृहको जाते हुये मार्गमें एक गहन बन पड़ता थः । जिस समयका हम वर्णन लिख रहे हैं अर्थात् आजसे करीब पौनेतीन हजार वर्ष पहले जब कि भगवान पार्श्वनाथका सर्व सुखकारी जन्म होनेवाला था, तब इस भारतवर्षमें आजकलकी तरह रेल-गाड़ियां देशके इस छोरसे उस छोर तक दौड़ती नहीं फिरती थी, लोग इसतरह निडर होकर यात्रा नहीं कर सके थे कि जैसे अब करते हैं । अंग्रेजी राज्यके स्थापित होनेके पहले तक प्रायः यही दशा यहां मौजूद थी; परन्तु इसके अर्थ यह नहीं हैं कि प्राचीन भारतमें शासक लोग यात्रियों की रक्षाका प्रबंध नहीं करते थे और यह बात भी नहीं है कि पहले यहां कोई शीघ्रगामी रथ आदि यात्रा वाहन थे ही नहीं ! प्रत्युत हमको स्पष्ट मालूम है कि जनसाधारणकी यात्रा निष्कंटक बनाने के लिए स्वयं राजा लोग वनमें जाकर डाकुओं और वटमारोंको पकड़नेका प्रयत्न करते थे। तथापि अग्निरथ और वायुयान जैसे शीघ्रगामी सवारियां भी थीं, परन्तु यह निश्चित नहीं है कि वे सर्वसाधारणको प्रायः मिल सक्ती हों।
ऐसे ही समयमें धनमित्र, धनदत्त आदि बहुतसे सेठोंके पुत्र व्यापारके लिए कौशाम्बीसे चलकर राजगृहकी ओर रवाना हुये थे,
१. दी साम्स ऑफ दी वेदरेन (थेरगाथा)-अंगुलिमाल ।