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भगवान पार्श्वनाथ । तपश्चरणके कारण शरीर कश हो चुका है; पर आत्मतेजका प्रभाव उनके सुन्दर मुखपर छागया है कि मानो सूर्य ही उग रहा है । वन हम्ती भी इस दिव्य पुरुषके सामने अवाक होरहा । अपने दुष्कर्मको बिल्कुल ही भूल गया ! आत्मतेनका प्रभाव ही ऐसा होता है !
आजकल आत्मवादको प्रगति प्रायः शिथिल होगई है । इसी कारण लोगोंको आत्माकी अनन्तशक्तिमें बहुत कम विश्वास है । भौतिकवादके झिलमिले प्रकाशने ही उनकी आंखें चुधिया दीं हैं, परन्तु अब जमाना पलटता जा रहा है। लोग फिरसे आत्म. वादके महत्वको समझते जा रहे हैं और आत्माकी अनन्तशक्तिमें विश्वास करने लगे हैं । सचमुच आत्माकी अमोध अनन्तशक्तिके समक्ष कोई भी कार्य कठिन नहीं है । फिर भला, अगर वनहाथी वज्रघोष मुनिके अलौकिक आत्मरूपके सामने नतमस्तक होजाके तो कौनसे आश्चर्यकी बात है ? वह जमाना तो आत्मवादके प्रचंड अभ्युदयका था । मनुष्योंमें ही क्या, बल्कि पशुओं तकमें आत्म प्रभाव अपना असर किये हुए था । इसी कारण पुण्य भावनाओंने वातावरणको विशेष धर्ममय बना दिया था, जिससे उस समयके प्राणी भी हर बातमें आनसे विशेष उन्नतिशाली थे । उनका मानसिक ज्ञान खूब ही बढ़ा चढ़ा था। यहांतक कि पूर्वभवकी स्मृति पशुओं तकको होनाती थी । वज्रघोष हाथीको भी मुनिके उरस्थल पर श्रीवत्सका चिन्ह देखकर अपने पूर्वभवका स्मरण होआया था।
पाठको, यह दिव्य साधु राजा अरविंद ही थे । सल्लकी वनमें यह राजर्षि रूपमें विराजमान थे । मरुभूतिकी मृत्युके उपरान्त यह एक रोज बादलोंकी उथलपथल देख रहे थे, कि देखते ही देखते