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भगवान पार्श्वनाथ ।
वर्णनको देखते हुये इन व्याख्यायोंपर सहसा विश्वास नहीं किया जासक्ता ? मध्य भारत और आसाममें लंकाका अस्तित्व मानना बिल्कुल भूल भरा है । आज कलकी लंका भी रावणकी लंका नहीं है, यह हम पहले देख आये हैं । तथापि हिन्दूशास्त्रोंसे भी इस लंकाका सिंहलद्वीप होना और इसके अतिरिक्त एक दूसरी लंका होना सिद्ध है ।' अब केवल मलयद्वीपको राक्षसद्वीप और लंका बतलाना विचारणीय है । मलयद्वीपमें भी त्रिकूट पर्वत और सोनेकी कानें होने के कारण उसको रावणकी लंका ख्याल किया गया है, किन्तु यदि वही राक्षसद्वीप था तो फिर उसका नाम हिन्दूशास्त्रोंमें मलयद्वीप क्यों रक्खा गया ? तिसपर स्वयं हिन्दूशास्त्रोंसे उसका लंका होना बाधित है । रामायणमें कहा गया है कि रावण वरुणके 1 देशसे बालीको छुड़ाने आया था । वरुणका देश पश्चिममें यूरोपके नीचे कैस्पियन समुद्रके निकट था और बाली मध्य ऐशिया में बलिखनगर में कैद रखखे गये माने जाते हैं । इस अवस्थामें रावण की लंका मिश्रमें होना ही ठीक है । हिन्दू पुराणोंमें शंखद्वीपमें म्लेच्छों के साथ राक्षसोंको रहते बताया गया है और कहा गया है कि वहां कोई भी ब्राह्मण नहीं था इस कारण प्रमोदके राजाके अनुग्रह से पोथिऋषिने वहां वैदिक धर्मका प्रचार किया था । ब्रह्माण्ड और स्कन्दपुराणमें जो कथा राक्षसस्थानकी उत्पत्ति में दी हुई है, वह भी उसे मिश्र के बरबरदेशके निकट बतलाती है और
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१- पूर्व० पृ० ३४६-३४७ २ - रामायण उत्तरकांड २३-२४ ३ - इन्डि० हिस्टॉ० क्वार० भाग २ पृ० २४० ४ - पूर्व० भाग १ पृ० ४५६ ५ - ऐशियाटिक रिसचेंज भाग ३ पृ० १०० ६ - पूर्व० पृ० १८२-१८५
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