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नागवंशजका परिचय !
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लंका पहुंचे थे । उधर वहांसे आकर किहकंधापुरके राजा सुग्रीव की सहायता राम-लक्ष्मणने की, सो सब वानरवंशी इनके सहायक हो गये थे । इसी समय क्रौंचपुरके राजा यक्ष और रानी राजिलताका पुत्र यक्षदत्त था । वह एक स्त्रीपर मोहित था । ऐनमुनिके समझानेसे वह मान गया था । उपरांत किहकंधापुरसे हनूमान सीताका पता लगाने चला था, सो पहले उसने महेन्द्रपुरमें अपने मामाको बरा किया था । उनको रामचंद्रजी के पास भेजकर फिर वह अगाड़ी बढ़ा था और उसे दधिमुखद्वीप पड़ा था जिसमें दधिमुख नगर था । वहां निकट आग लगे वनमें दो मुनिराज व तीन कन्यायें हनूमान - जीने देखीं थीं । उनका उपसर्ग उन्होंने दूर किया था । दधिमुख नगर के राजा यक्षकी वे तीन कन्यायें यीं । आखिर उनको रामचंद्रने परण | था । फिर हनूमान लंका पहुंच गए थे। प्रमदवनमें उसने सीता को देखा था । हनूमान सीताकी खबर ले जब लौट आए त राम-लक्ष्मणने लंकापर चढ़ाई की थी। वे पहले बेलंधरपुर पहुंचे थे और वहां समुद्र नामक राजाको परास्त किया था । फिर सुबे पर्वतपर सुबेल नामक विद्याधरको वश किया था । उपरांत अक्षयवनमें रात्रि पूरी की थी । अगाड़ी चले तो लंका दूरसे दिखाई पड़ी । हंसद्वीप में डेरा डाले और वहांके हंसरथ राजाको जीता । हंसीप अगाड़ी रणक्षेत्र रच दिया। रावणके सेनापति अरिंजयपुर नगरके राजा के दो पुत्र थे । यह अपने पूर्वभवों में एकदा कुशस्थल . नगर में निर्धन ब्राह्मण जिनधर्मसे पराङ्मुख थे । जैनी मित्रके संयोगसे जैनी हुये और फिर अन्य भवमें तापस होकर अरिंजयनगर के राजाके पुत्र हुये थे । रावणसे युद्ध हुआ । सुग्रीव और भामण्डल