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________________ धरणेन्द्र - पद्मावती कृतज्ञता ज्ञापन | [ १३७ 'प्रशंसा निम्न पद्योंमें' करते हैं: “धर्मानुराग रंगसे उमंग भरी हो, संध्या समान लाल रंग अंग धरी हो । 'जिनसंत शीलवंत पै तुरंत खड़ी हो, मनभावती दरसावती आनंद बड़ी हो ॥५॥ चरणाबिंद में हैं नूपुरादि आभरण, कटिमें हैं सार मेखला प्रमोदकी करन । उरमें है सुमनमाल सुमनमालकी माला, पटरंग अंग संगसों सोहे है विशाला ॥११ करकंजचारुभूषनसों भूरि भरा है, भवि-वृंद को आनन्दकंद पूरि करा है 1 जुग भान कान कुंडलसों जोति धरा है, शिरशीसफूल फूलसों अतूल धग है ॥१२ मुखचंदको अमंद देख चंद हू थंभा, छबि हेर हार होरहा रंभाको अचंभा । तीन सहित लाल तिलक भाल धरै है, विकसित मुखारविंद सौं आनंद भरे है ।" श्वेतांबर जैनों के शास्त्रों में भी धरणेंद्र और पद्मावतीको भगवान् पार्श्वनाथके शासन देवता स्वीकार किया गया है । यद्यपि कहीं२ धरणेन्द्रका नाम वहां 'पार्श्व' लिखा मिलता है । परन्तु श्रीभावदेव - सूरिने धरणेन्द्र और पाश्वं शब्दों को समान रूपमें व्यवहृत किया है । १ - वृन्दावनविलास पृ० २२-२३ । श्री बृहद्मावतीस्तोत्र में इसका उल्लेख इन श्लोकोंमें है:विस्तीर्णे पद्मपीठे कमलदल श्रिते चित्तकामांगगुप्ते | लांतांगीं श्रीसमेते प्रहसितवदने नित्यहस्ते प्रशस्ते ॥ रक्त रक्तोत्पलांगी प्रबबहसि सदा वाग्भवेकामराजे । हंसारूढे त्रिनेत्रे भगवति वरदे रक्ष मां देखि पद्मे ॥ १० ॥ जि नाशिकांते हृदि मनशि दशा कर्णयोर्नाभिपद्म । स्कंधे कंठे ललाटे शिरसि च भुजयो वृष्ट पार्श्वप्रदेशे ॥ सर्वांगोपांग सुब्धापयतिशय भुवनं दिव्यरूपं सुरूपं । ध्यायंति सर्वकालं प्रणवलयुतं पार्श्वनाथेति शब्दे ॥ १२ ॥ २ - लाइफ एण्ड स्टोरीज ऑफ पार्श्वनाथ, फुटनोट- पृ० ११८ और पृ० १६७ और हार्ट ऑफ जैनिज्म पृ० ३१३ । ३ - भावदेवसूरिकृत श्रीपाचरित सर्ग ७ ० ८२७... और हेमचन्द्राचार्यका अभिधान चिन्तामणि ४३ | ४ - श्रीपार्श्वचरित सर्ग ६ श्लोक १९० - १९४ यहां धरणेन्द्रका ही नाम लिखा है ।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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