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भगवान पार्श्वनाथ |
८. प्रकीर्णक - प्रज्ञा ।
९. अभियोग्य - वह देव जो अपनेको सवारी रूप घोड़ा
:
आदि बना देते हैं ।
१०. और किल्विषिक - सेवकदल |
धरणेन्द्र नागकुमार देवोंका इन्द्र था और शेष जो उनके
- सामानिक आदि थे वह ऊपर बतलाये हैं । इनके विषयमें और विशेष वर्णन श्री अर्थप्रकाशिकाजी में भवनवासी देवोंके साथ निम्नप्रकार है:
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'भवननिमें वलें हैं तातें इनकूं भवनवासी कहिये है । भवनवासीनिमें असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार, दिक्कुमार ऐसे दश विशेष संज्ञा नाम कर्मकरि कोनी जानना, बहुरिकोऊ श्वेतांबरादिक कहैं जो देवनिकरि 'अस्यंति' कहिए युद्ध करें प्रहार करें ते असुर हैं ऐसें करें सो नहीं । ए कहना तो देवोंकों अवर्णवाद है, इसमें मिथ्यात्वका बंध होय है । ते सौधर्मादिकनिके देव महा प्रभावान हैं। इनके ऊपरि हीन देव मनकरिकैं हू प्रतिकूल पणा नहीं विचारे हैं। जो एता विशेष है। जो चमरेन्द्र अर वैरोचन ए इन्द्र अपनी ऐश्वर्य संपदा कर परिणाम मैं ऐसा मद करें हैं जो हमार सौधर्म ईशान इन्द्रसौं कौनसी संपदा घट है, हम भी उनके तुल्य ही हैं ऐसी परिणामनि मैं ईर्षा है सो अभिमानकी अधिकता तें ऐसी ईर्षा करे ही हैं । बहुरि सौधर्मादिक देवनिकैं विशिष्ट शुभ कर्मका उदयकरि विभव है सो अरहंत पूजा तथा भोगानुभवन १ - तत्वार्थ सूत्रम् अ० ४ सूत्र ४.