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भगवान पार्श्वनाथ |
जब वे नाग और नागिनी धरणेन्द्र और पद्मावती हो गये तो उसी समय अपने जन्मसिद्ध अवधिज्ञान (Clairovoyance) के बलसे उन्हें अपने उपकार करनेवाले राजकुमार पार्श्वनाथका ध्यान आया । 'वे शीघ्र ही बनारस आये और नम्रीभूत मुकटोंकी मनोहर कांति से जिनके चरण पूजित हैं ऐसे भगवान पार्श्वनाथकी उन्होंने पूजा की ! बहुविधि पूजा करके और कृतज्ञता ज्ञापन करके वे अपने निवासस्थानको चले गये ।'
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जैन शास्त्रों में इनका निवासस्थान पाताल अथवा नागलोक बतलाया गया है ।' यह स्थान जिस भूमंडलपर हम रहते हैं उस मध्यलोककी पृथ्वीके नीचे अवस्थित कहा गया है। वहांपर इनके बड़े२ महल और भवन भोगोपभोगकी सुन्दर सामिग्री से पूर्ण हैं, यह शास्त्रों में लिखा हुआ है । प्रख्यात जैन ग्रन्थ श्री राजवार्तिकजीमें इसका उल्लेख इस तरह पर है:
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'खरपृथ्वी भागे उपर्यधश्चैकैकयोजन सहस्रं वर्जयित्वा शेषे उल्लेख मिलता है । इससे हम इनके ये नाम जातिवाचक ही समझते हैं । उदाहरण के रूप में ' संजयंत मुनि' की कथामें पद्मपुराण ( पृ० ५६) में दूसरे तीर्थकर श्री अजिनाथजीके समयमें 'धरणेन्द्र' के प्रकट होनेका उल्लेख है । 'पुष्पांजलि व्रतकथा' तथा 'पुण्याश्रव कथाकोष' ( पृ० २६०) में ऐसे ही 'पद्मावती' का सहायक होना पार्श्वनाथजीसे पहले बतलाया गया है ।
-पाताला
१- पद्मावतीचरित्र - 'पाताले वसिता । - श्री बृहत् पद्मावतीस्तोत्र - धिपति' श्लोक २२. हरिवंशपुराण पृष्ठ ३३ - 'मणि और सूर्यसमान देदीप्यमान पाताललोक में असुरकुमार नागकुमार आदि दश प्रकारके भवनवासी देव यथायोग्य अपने२ स्थानोंपर रहते हैं ।' २ - तत्वार्थसूत्रम् ( S. B. J. Vol. II) पृ० ७९.