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________________ भगवान पार्श्वनाथ । मिल गये थे। धर्मके साम्राज्यमें भला कमी किस बातकी रह सक्ती है ! वहां तो स्वयं त्रिलोकपूज्य तीर्थंकर भगवानका शुभागमन हुआ था ! क्षेत्रके भाग्य खुल गये थे ! उसका नाम दुनियांके कोनेरमें फैल गया था ! सो भी तवहीके लिये नहीं बल्कि अनन्तकालके लिये ! आज भी भारतीय काशीधामका नामोच्चारण करके अपनेको धन्य समझते हैं ! ईसवीसन ६२९ और ६४४के मध्यवर्ती समयमें इस देशका पर्यटन करने घनत्सांग नामक एक चीन देशका यात्री आया था। सारे भारतका उसने परिभ्रमण किया था और पवित्र काशीराजके भी उसने दर्शन किये थे। इस पावन-स्थानको उसने उस समय तीन मील लम्बा और एक मील चौड़ा गंगाके पश्चिम तटपर स्थित बतलाया था।' इस भव्य नगरमें उस समय राजा विश्वसेन राज्य करते थे। यह इक्ष्वाकवंशीय काश्यप गोत्री महान् क्षत्री थे। बड़े ही धीरवीर और गंभीर प्रनापालक नृप थे। बलवान, सुंदर सौम्य शरीरके धारक दूसरे कामदेव ही जान पड़ते थे। जैनाचार्य इनके विषयमें कहते हैं किः "तत्पतिर्विश्वसेनाख्योप्यभूद्विश्वगुणैकभूः । काश्यपाख्यसुगोत्रस्थ इक्ष्वाकुवंशखां शुमान् ॥३६॥ संशशी चकलाधारस्तेजस्वी भानुमानिव । प्रभुरिंद्रइवाभीष्टः फलदं कल्पशाखिवत् ॥ ३७ ॥ जिनेन्द्रपादसंसक्तो गुरुसेवापरायणः । धर्माधार सदाचारी रूपेण जितमन्मथः ॥ ३८ ॥ १-कनिंघमं, जारारफी ऑफ ऐन्शियेण्ट इन्डिया 'नया' पृ०. ४९९ ॥
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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