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॥ श्री नन्दीस्त्र मूलपाठः ॥ मूअं हुंकारं वा, वाढक्कारं पडिपुच्छ वीमंसा.। ततो पसंगपारायणं च परिणिट्ठ सत्तमए ॥९६॥
सुचत्यो खलु पढमो, बीओ निज्जुत्तिमीसिओ भणिओ । तइओ य निरवसेसो, एस विही होर अशुओगे ॥९७॥
से वं अंगपविलु, से सं सुयनाणं से रां परोक्खनाणं, से वं नंदी ॥ नंदी समत्ता ॥
इअ नंदीसुत्तं समत्तम्