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(३०)
श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला. ससि पुप्फदंत सीयल सिजसं वासुपुजं च ॥ २० ॥ विमल मणंत य धम्म सन्ति कुंथु अरं च मल्लिं च ।। मुनिसुव्वय नमिनेमि पासं तह वद्धमाणं च ।। २१ । पढमत्थि इंदभूइ बीए पुणहोइ अग्गिभूइत्ति ॥ तईए य वाउभूई तओ वियत्ते सुहम्मेय ॥ २२ ॥ मंडिअ मोरिय पुत्ते अकंपिऐ चेव अयल भायाय॥ मे यज्जेय पहासेय गणहरा हुंति वीरस्स ॥ २३ ॥ निव्वुइ पह सासणयं जयइ सया सब भाव देसणयं॥ कु समय मय नासणयं जिणंदवर वीर सासणयं ॥२४॥ सुहम्मं अग्गिवेसाणं जंबु. नामं च कासवं पभवं ॥ कच्चायणं वंदे वच्छं सिजे भवं तहा ॥ २५ ॥ जसमदं तुंगियं वंदे संभूयं चेव माढरं ॥ भद्दबाहुं च पाइन्नं थूलभदं च गोयमं ॥ २६ ॥ ऐलावच्चसगोत्तं वंदामि महागिरि मुहत्थि च ॥ तत्तो कोसियगोत्तं बहुलस्स सरिवयं वन्दे ॥ २७ ॥ हारिय गुत्तं साइं च वंदिमो हारियं च सामज ।। वन्दे कोसिय गोत्तं संडिल्लं अन्ज जीयधरं ॥ २८ ॥ तिसमुदखायकित्तिं दीव समुद्देसु गहिय पेयालं ।। वंदे अज समुदं अक्खुभिय समुद्दगंभीरं ॥ २९॥ भणगं करगं झरगं पभावगं णाणदंसण गुणाणं ॥ वंदामि अज मंगुं सुय सागर पारगं धीरं ॥३०॥ वंदामि अज धम्म तत्तो वंदे य भद्द गुत्तं च ॥ तत्तोय अज वइरं तव नियम गुणेहिं वरं समं ।। ३१ ॥ वंदामि अन्ज रक्खिय खमणे रक्खिय चारित्त सवस्से ।। रयण करडंग भूओ अणुओगो जेहिं ॥ ३२ ॥ नाणम्मि दसण म्मिय तव विणए णिच्च काल मुज्जुत्तं ।। अजं नंदिलखमणं सिरसा वंदे पसन्नमणं ॥ ३३ ॥ वड्वउ वायगवंसो जलवंसो अन्ज नागहीणं ।। वागरण करण भंगिय कम्मपयडी पहाणाणं ॥३॥ जचंजण धाउ समप्पहाण मुद्दिय कुवलय निहाणं ॥ वड्दउ वायगवंसो रेवइनक्खत्त नामाणं ॥३०॥ अयलपुरा णिक्खंते कालियसुय आणुओगिए धीरे ॥ बंभद्दीवगसीहे वायगपय मुत्तमं पत्ते । ३६॥ जेसिं इमो अणु ओगो पयरइ अनाविअडढभरहम्मि ॥ बहु नयर निग्गय जसे ते बंदे खंदिलायरिए ॥ ३७ ॥ तत्तो हिमवन्त महंत विक्कमे धिइ परक्कम मणंते ।! सज्झाय मणंतधरे हिमवंते वंदिमो सिरसा ॥ ३८ ॥ कालिय सुय अणु ओगस्स धारए धारए य पुव्वाणं ॥ हिमवंत खमा समणे वंदे णागज्जुणायरिये ॥ ३९ ॥ मिउमद्दव संपन्ने आणुपुन्धि वायगत्तर्ण पत्ते ॥ ओहसुय समायारे नाज्जुण वायए वंदे ॥ ४० ॥ गोविंदाणं पि नमो अणुओगे विउल धारिणि दाणं ॥ णिचं खंति दयाणं परुवणे दुल्लभिं दाणं ॥ ४५ ॥ तत्तो य भृयदिन्नं निच्च तव संजमे अनिविण्णं । पंडिय जण सामण्णं वंदामो संजम विहिण्णु ॥ ४२ ॥ करकणगतविय चंपग विमउलवर कमल गब्भ सरिवन्ने ॥ भविय जणहिययदइए दयागुण विसारए धीरे॥४३॥ अड्ड भरहप्पहाणे बहुविह सज्झाय सुमुणिय पहाणे । अणुओगिय वर वसभे नाइल कुल वंसनंदिकरे ॥४४॥ भूयहियअपगम्भे वंदेऽहं भूयदिन्न मायरिए । भवभय वुच्छेय करे सीसे नागज्जुण रिसीणं ।। ४५॥ सुमुणिय निचा निचं सुमुणिय सुत्तत्थ धारयं वन्दे ॥ सब्भावुब्भावणया तत्थं लोहिच्चणामाणं ॥ ४६ ।। अत्थ महत्थक्खाणिं सुसमण वक्खाण कहण निवाणिं ॥ पयईए महुरवाणि पयओ पणमामि दूसगणिं ।। ४७ ॥ तव नियम सच संजम विगयज्जव खंति मद्दवरयाणं । सील गुणगद्दियाणं अणुओग जुगप्पहाणाणं ॥४८ ॥ सुकुमाल कोमल तले तेसिं पणमाभि लक्खण पसत्थे पाए पावयणीणं पडिच्छ सय एहि पणि वइए । ४९ ।। जे अन्ने भगवन्ते कालिय सुय आणु ओगिए धीरे ॥ ते पणमिऊण सिरसा नागस्स परूवणं वोच्छा ॥ ५० ॥