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________________ ते बन्ने मुकाबलो (तुलना) थई शके. छद्मस्थ जीव केटलीक वखत खोटा अनुमानो बांधी ले छे माटे तेने दिशासूचन कराव्युं होय तो ते भूलने पात्र न बने. आ कारणथी भ्रष्टाचारी आचार्यनां लक्षण जाणवानी जिज्ञासा दर्शाववामां आवी छे. नीचेना १०-११ श्लोकथी ते हकीकत जणाववामां आवे छे. सच्छंदयारिं दुस्सीलं, आरंभे सुपवत्तयम् । पीढयाइपडिबद्धं, आउक्कायविहिंसगम् ॥ १० ॥ मूलुत्तरगुणब्भद्वं, सामायारीविराहयम् । अदिन्नालोयणं निच्वं, निच्चं विगहपरायणम् ॥ ११ ॥ [ स्वच्छन्दचारिणं दुःशील- प्रारम्भे सुप्रवर्तकम् । पीठकादिप्रतिबद्ध, अप्कायविहिंसकम् ॥ १० ॥ मूलोत्तरगुणभ्रष्टं, सामाचारीविराधकम् । अदत्तालोचनं नित्यं नित्यं विकथापरायणम् ॥ ११ ॥ गाथार्थ – (१) स्वच्छंदाचारी- पोतानी मरजी मुजब वर्तनार, (२) दुराचारी, (३) आरंभ-समारंभमां प्रवर्तावनार, (४) पाट-पाटलादि वगर कारणे वापरनार, (५) अप्काय जीवोनो अनेक रीते घात करनार, (६) अहिंसादिक मूळगुण अने पिंडविशुद्धि प्रमुख उत्तरगुणोथी भ्रष्ट थल- तेनुं परिपालन न करनार, (७) दश प्रकारनी सामाचारीनी विराधना करनार, (८) पोताना पापनी गुरु पासे आलोचना नहीं करनार तेम ज (९) राजकथा आदि चार विकथाओमां रक्त रहेनार आचार्यने उन्मार्गगामी जाणवा. १०-११ विवेचन – (१) स्वछंदाचारी - जिनरांजनी आज्ञा प्रमाणे न वर्ततां पोतानी मरजी मुजब वर्तन करे ते स्वच्छंदाचारी कहेवाय. स्वछंदाचारी कदी पण साचा मार्गनो स्वीकार करी शकतो नथी तेमज पोतामां तेवी स्थिति नहीं होवाने कारणे तेवा सत्य धर्मनो उपदेश पण आपी शकतो नथी एटले तेवा आचार्यना अवलंबनथी स्वश्रेयसिद्धि थई शकती नथी. (२) दुराचारी - ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार अने वीर्याचार-आ पंचाचारनो विराधक, तेनुं यथार्थ पालन न करनार तेमज उद्भट वेष धारण करवा उपरांत विपरीत क्रिया करनारने दुराचारी जाणवा (३) आरंभादिकमां रक्त — आरंभ, संरंभ अने समारंभ - ए त्रण प्रकार छे. पृथ्वीकायादिकने विषे प्रवृत्ति करे ते आरंभ कहेवाय. जेमके- सचित्त माटी- पृथ्वी आदिथी पोताना हाथ धोवे, मकान चणावे, खेती करावे; अप् (काचा सचित्त पाणी) थी स्नानादि करे, वस्त्रादि धोवे; तेउ- अग्निना दीवा बाळे, धूप करे; वाउ-वायु, पवन माटे पंखा राखे, चामर वींझावे, पोता पासे रहेल मुहपत्तिवडे पवन खाय, उघाडे मुखे बोले, मुखवडे फूंक मारे; वनस्पति-लीलोतरी खाय, दातण करे, तांबूल खाय, गाय, घोडा प्रमुखने घास चरावे, तेमज गंडोल, जळोक, अळसीयादिक बेइंद्रिय, मकोडादिक श्रीगच्छाचार- पयन्ना- ४०
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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