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________________ यशनी वांछा वधे छे अने चारित्ररक्षाना नियमो पाळववामां शिथिलता आवे छे. आटला खातर ज श्रीपुक्खरवरदी (श्रुतस्तव) मां कह्यं छे के सीमाधरस्स वंदे । अवश्य करवा योग्य क्रिया आगाढ कहेवाय छे. योगवहनादिं क्रियामां वधतुं ओछु आचरण करे ते साध्वी धर्मने लायक नथी. जेम माता पुत्र या पुत्रीनुं रूडी रीते पालन करे तेम पांच समिति अने त्रण गुप्तिरूपी अष्ट प्रवचन माता संयमधर्मनुं रक्षण करे छे. साध्वीए गमनागमनमां ईर्यासमिति अने बोलवामां भाषासमिति विगेरेनुं पूर्ण लक्ष राखवुं जोईए; तेने बदले वेठ * उतारवानी माफक अयतनापूर्वक - उपेक्षाभावथी करणी कराय ते कदापि फलदायक थती नथी. गृहस्थाश्रममां पण अतिथि आवे तो तेनी आगता-स्वागता करवानो रिवाज (फरज) छे तेम अन्य कोई साध्वी ग्रामांतरथी आवी होय तो तेनो सत्कार करवो, तेनो श्रम दूर करवानो प्रयास करवो अने शुद्ध अन्नपानादिकथी बहुमान कर, जो आ प्रमाणे न वर्ताय तो साध्वी पोताना संयमधर्मथी भ्रष्ट थाय छे. रंगेला वस्त्र के डांडो वापरे, किनारवाळो भरेलो ओघो राखे ते साध्वी स्वेच्छाचारी जाणवी. मुख मचकोडे, नेत्र वांका करे, स्तन ऊंचा बांधे, हाथणीनी पेठे गति करे, चालतां चालतां आडुं अवळु जोया करे-आ बधा विकारनां लक्षणो छे. आवी रीते वर्तन करती साध्वी वृद्ध वयवाळाने पण मोहित करे, कामज्वर प्रगटावे तो अन्य युवान वयवाळाने माटे तो पूछवुं ज शुं ? तेओने तो मोह प्रगटे ज. आवी रीते मोहोदय प्रगटाववाथी परिणाम विपरित आवे अने परिणामे शासननी निर्भछना थाय माटे आवी भ्रष्टाचारी साध्वीथी गच्छनुं रक्षण करवु. जे साध्वी निरंतर वगर कारणे हस्त पादादिनं प्रक्षालन कर्या करे, जुदी जुदी राग-रागणिओ शीख्या करे ते पोते स्वकृत्यथी चूके छे अने अन्यने मोह पमाडे छे. गीतादिक कार्ण मोहना छे अने एते एक वार तेनी शरुआत थई के पछी क्रम चूकाई जवाय छे अने जेम पर्वतना शिखर ऊपर थी पडेलो प्राणी नीचे तळेटीएज पहोंचे छे तेम साध्वी आ रीते पतित थई ते अध:पातने ज पामे छे. पछी तेने मोढा ऊपर शणगार करवानी, नेत्रमां अंजन करवानी, मस्तकमां सिंदुर पूरवानी, कपाळमां तिलक करवानी, गळामां पुष्पमाळा पहेरवानी, मुखमां तांदूल राखवानी, शरीरे चंदनादिकनुं विलेपन करवानी इच्छा थाय छे. १२२ मी गाथानो उत्तरार्ध पाठांतरमां आ प्रमाणे पण आयो छे-गेण्हणरामणमंडणभोयंति व त्ता उ कब्बडे । आ उत्तरार्धनो अर्थ ए छे के गृहस्थोना बालकने ग्रहण करे, तेने विविध क्रीडापूर्वक रमाडे अने तेने भोजन करावे ते साध्वी नथी पण नटडी जाणवी. गृहस्थोना बालकोने रमाडवाथी, तेनो अतिशय परिचय करवाथी केवुं विपरीत परिणाम आवे छे ते माटे अगाउ पृ. २८३ ऊपर बहुपुत्रिका (सुभद्रा) की कथा आवी गई छे. हवे केवी रीते साध्वी शयन करवुं ते जणावे छे. जत्थ य थेरी तरूणी, थेरी तरुणी अ अंतरे सुअइ । गोअम ! तं गच्छवरं, वरनाणचरित्तआहारं ॥ १२३ ॥ * राजा अगर तो अधिकारीओ पोताना कार्य माटे हलकी वर्णना लोकोने बोलावे छे अने तेनी पासे काम करावी कंई पण बदलो आपता नथी तेने 'वेठ' कहेवामां आवे छे. दबाणने अंगे ते लोकोने कार्य करवुं पडे छे पण तेमना मनमां काम करवानो उत्साह होतो नथी. श्रीगच्छाचार - पयन्ना- २९४
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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