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________________ पर आसक्ति धरावे छे ते पोतार्नु श्रेष्ठ संयम-फळ गुमावी बेसे छे अने कोटी मूल्यन रत्न एक कोडीमां वेची नाखवा जेवू आचरण करे छे; माटे साध्वी थया पछी पासत्थीणीने योग्य वर्तन कदापि पण न करवू हवे कई साध्वी गच्छ-शासनने शत्रुरूप छे ते दर्शावे छे गच्छइ सविलासगई, सयणीअं तूलिअं सविब्बोअं। उव्वट्टेइ सरीरं, सिणाणमाईणि जा कुणइ ॥११४ ।। गेहेसु गिहत्थाणं, गंतूण कहा कहेइ काहीआ। तरुणाइ अहिवडते, अणुजाणे साइ पडिणीआ॥११५ ॥ [गच्छति सविलासगति:, शयनीयं तूलिकां सविब्बोकम् । उद्वर्तयति शरीरं, स्नानादीनि या करोति ॥११४ ॥ गृहेषु गृहस्थानां, गत्वा कथा कथयति काथिका। तरुणादीन् अभिपततः, अनुजानाति सा प्रत्यनीका ॥११५ ।।] गाथार्थ-विलासयुक्त गतिथी वेश्यानी माफक भ्रमण करे, रु आदिथी भरेली तळाईमां ओशीकापूर्वक शयन करे. तेलादिकथी शरीरनुं उद्वर्तन (पीठी) करे, स्नानादिकथी शरीर-शोभा वधारे, गृहास्थोना घरे जई इच्छानुसार कथा करे, सामा आवता युवान पुरुषोने सत्कारे-वचनना आडंबरथी अभिनंदे-आवा वर्तनवाळी साध्वीने शासननी शत्रु जाणवी. विवेचन–अंगनो मरोड करवो, लहेंकापूर्वक नेत्रकटाक्ष करवो, वांकी नजर करी जोवू-ए बधा विलासनां लक्षण छे. केटलाक आचार्यों नेत्रना विकारने (कटाक्षने) विलास कहे छे. पीजेला रूना भरेला गादलानो तेमज ओशीकानो शयनसमये उपभोग करवो के बेसती वखते पण रूनी भरेली नानीनानी गादलीनो उपभोग करवो ते चारित्रपात्र साध्वी माटे उचित नथी. पीठी चोळी स्नान करवाथी शरीर ऊपरनो मळ दूर थाय छे देहकांति वधे छे परन्तु साध्वीने माटे ते बधा निषिद्ध छे. जो ते तेवू वर्तन करे तो तेने साध्वी नहि परन्तु शासननी शत्रु जाणवी. साध्वीए गृहस्थना घरे जईने के उपाश्रयमां पण रहीने संयमयोग सिवायनी बीजी कथा न करवी. स्वाध्यायादि करवाने स्थाने देशकथादि चार विकथा करे ते साध्वीधर्मने उचित नथी. वळी आहारादिने अर्थे, वस्त्र पात्रने निमित्ते, पोतानो यश फेलाववाने अर्थे के पोताना बहुमान-पूज्यभावने अर्थे जो धर्मोपदेश करे तो पण ते साध्वीधर्मने लायक नथी. आ बाबतमां वादी प्रश्न करतां पूछे छे के-भगवंते तो पांच प्रकारनी वाचना (सज्झाय) कही छे-धर्मकथा, वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा ने परावर्तना, स्वाध्यायमा धर्मकथानो समावेश थाय छे अने तेनाथी भव्य जीव प्रतिबोध पामे छे, तीर्थनी वृद्धि थाय छे. धर्मकथाथी निर्जरा थाय छे तो तमे निषेध शा माटे फरमावो छो? आचार्य भगवंत तेनो जवाब आपतां कहे छे के-धर्मकथा ए स्वाध्याय- पांचमुं अंग छे ते बराबर छे, परन्तु दिवस ने रात आठे पहोर धर्मकथा न करवी. बधो समय धर्मकथामां व्यतीत करवाथी हानि थाय. पडिलेहणादिक चारित्रना योग छे माटे ते करवाना समये स्वाध्याय न करवो, सूत्र, अर्थनी पोरिसीने श्रीगच्छाचार–पयन्ना- २९०
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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