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________________ थाय. सुभद्रानं आवं कथन सांभळी साध्वीओए का के-हे देवा- प्रिया ! अमे निग्रंथीणीओ छीए. पांच समिति, त्रण गुप्ति ए अष्टप्रवचन मातारूप अमारो धर्म छे. तुं जे कहे छे ते अमारे सांभळवू पण कल्पे नहीं तो तेनो उपाय बताववानी बात तो क्यां रही? आवी वातनी अनुमोदना के उपदेश पण अमाराथी न अपाय तो तने अमारे आ बाबतमां शुं कहेवू? अमारी फरज तो केवळी भगवंत प्ररूपित धर्मनो उपदेश करवानी छे. हे सुभद्रा ! जो तारी इच्छा होय तो अमे धर्म संभळावीए. ते धर्मना आराधनथी सर्व प्रकारनां सुख मळे छे. सुभद्राना कहेवाथी साध्वीए जैनधर्मनुं स्वरूप सक्षिप्तमां समजाव्यु जे सांभळी ते अत्यंत प्रमुदित बनी. तेणे कां-हे पूज्य साध्वीओ ! तमारा प्रवचननी हुं श्रद्धा करुं छु, प्रतीति करुं छु, रुचि करुं छं. तमोए मने जे धर्म कह्यो ते मने 'तहत्त' छे. हुं श्रावकधर्म अंगीकार करुं छु. साध्वीओए पण तेने प्रेरणा आपतां कांजहा सुखं अर्थात् तमने सुख उपजे तेम करो. सुभद्राए पुन: वंदन करवा बाद साध्वीओ त्यांथी चाली गई. सुभद्रा श्राविका धर्मनुं रुडी रीते पालन करे छे. बाद ते जीवाजी वादिक नव तत्वनी जाण थई. धर्म प्रत्ये तेमनी रुचि घणी ज वधी गई. पूर्वनी तेनी दिनचर्यामां पण महत्वनो तफावत थई गयो. महामहेनते मळेलुं चिंतामणि रत्लने साचववा जे काळजी राखवी पडे तेवी काळजीथी सुभद्रा श्राविका धर्मनुं पालन करवा लागी. साधु-साध्वीने आहारादिक वहोराववानी अने तेमनी वैयावच्च करवानी एक पण तक सुभद्रा जती करती नहीं. एकदा सुभद्रा पाठली रात्रिए जागी उठतां विचार करवा लागी के-मार्थवाह साथे भोग भोगवतां घणा वर्ष व्यतीत कर्यां छतां मने संतान-सुख प्राप्त न थयुं तो हवे हुँ मारुं आत्मकल्याण साधुं प्रभाते उठी, सार्थवाहनी रजा लई सुव्रता साध्वी पासे दीक्षा ग्रहण करु. हवे आ पापमय संसारमा कोण पडयुं रहे? आवो विचार करी, प्रात:काळे सार्थवाह पासे आवी, हाथ जोडी विनति करी के-हे सार्थवाह ! तमारी साथे यथेच्छ भोगो भोगवतां घणो समय पसार थयो छतां मने संतानसुख प्राप्त न थयुं. हवे तमारी आज्ञा होय तो हुं सुव्रता साध्वी पासे दीक्षा लेवा इच्छु छु. भद्र श्रेष्ठीए सभद्राने का के-हे देवानप्रिया ! हमणां तो श्राविका धर्म पाळी. मारी साथे जे रीते भोग भोगवो छो ते रीते भोग-विलासो माणो. पछी काळांतरे भुक्तभोगी थई प्रवज्या लेजो. चारित्र्य पाळवू घण दुष्कर छे. सुभद्रो श्रेष्ठीनुं वचन अणसांभळ्युं करी फरी वार पोतानी इच्छा दर्शावी एटले सार्थवाहे तेने अनेक प्रकारे समजावी छतां सुभद्राए पोतानो दृढ निश्चय जणाव्यो त्यारे श्रेष्ठीए तेने चारित्र-स्वीकारवानी संमति आपी. . __ यथावसरे पोताना स्वजन-संबंधी वर्गने भोजनार्थे निमंत्रण आपी भद्र सार्थवाहे सौने जमाड्या अने तेओनो सत्कार को. बाद सुभद्राने स्नान करावी, विलेपन करी, आभूषणो पहेरावी, उत्तम वस्त्रो परिधान करावी. हजार पुरुषो उपाडे तेवी शिविकामां बेसारी, ज्ञातिजनो साथे गीतवाजिंत्रना नादपूर्वक भद्र सार्थवाह वाणारसी नगरीनी मध्यमां थईने सुव्रता साध्वीना उपाश्रय पासे आव्यो. सुभद्राने आगळ करीने भद्र श्रेष्ठी साध्वी पासे जई कहेवा लाग्यो-हे पूज्य ! आ मारी भार्या मने अत्यंत वल्लभ छे. तेने वात पित्तादिकनो व्याधि न थाय ते माटे में तेनी घणी काळजी राखी छे. तेने श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २८५
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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