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करे छे. मूळ श्लोकसंख्या १२०० छे अने तेना पर श्रीअभयदेवसूरिजीनी ३१२५ श्लोकनी टीका
६. रायपसेणीय (राजप्रश्नीय) - जेमां प्रथम नास्तिक अने बाद गुरु संसर्गथी आस्तिक बनेल प्रदेशी राजाए करेल प्रश्नो अने केशीकुमार गणधरे आपेल उत्तरोनुं वर्णन छे. प्रदेशी राजा मृत्यु पामीने सूर्याभ नामनो देव थयो अने प्रभु श्रीमहावीरने वंदन करवा आव्यो ते हकीकतनुं वर्णन छे. मूळ श्लोक २०७८ छे. श्रीमलयगिरिजीकृत टीका ३७०० श्लोकप्रमाण छे.
७. जीवाभिगम-जीव, अजीवनुं विस्तारपूर्वक चमत्कारिक वर्णन छे. मूळ श्लोक ४७०० छे. श्रीमलयगिरिकृत मोटी टीका १४००० श्लोकप्रमाण छे ज्यारे लघुटीका ११००० श्लोकनी छे. चूर्णी १५०० श्लोकनी छे.
८. पन्नवणा(प्रज्ञापना) -जीव अने अजीव कोने कहेवाय? तेने लगतुं वर्णन छे. तेना ३६ पदमां छत्रीश वस्तुओनुं वर्णन विस्तृत रीते करेल छे. मूळ श्लोक ७७८७, श्रीमलयगिरिकृत टीका १६००० श्लोकप्रमाण छे ज्यारे श्रीहरिभद्रसूरिकृत लघुटीका ३७२८ श्लोकनी छे.
९. महापन्नवणा-जीव तेमज अजीवने ओळखवानो जेमा विस्तृत वृत्तांत छे.
१०.पमायप्पमायं-आमांप्रमाद अने अप्रमादने लगतुं विवेचन करवामां आव्युं छे.जे प्रमाद सेवे तेने अशुभ विपाक-फल अने न सेवे तेने शुभ विपाक प्राप्त थाय. प्रमाद ए मानव जातनो मोटामां मोटो शत्रु होबाथी तेना संबंधे विशेष विवेचन करवामां आवे छे.
चोराशी लाख जीवयोनिमां भमतो जीव कोई पुन्ययोगे दश दृष्टांते दुर्लभ मनुष्य जन्म प्राप्त करे छे अने एवो चिंतामणि रत्न तुल्य नरभवपामीने पण केटलाक प्राणीओ प्रमादना वशवर्तीपणाथी तेने वृथा गुमावी बेसे छे. प्रमादना पांच कारणो जणावतां का छे के
मज्जं विसयकसाया, निद्दा विगहा य पंचहा भणिया ।
एए पंच पमाया, जीवं पाडेंति संसारे ॥ अर्थात् मद्य, विषय, कषाय, निद्रा अने विकथा- आ पांच प्रकारना प्रमादो प्राणीने भ्रमण करावे छे—संसारमा जन्ममरणादिकनां दुःखमां नाखे छे.
मद्य - मदिरा, भांग, गांजो, अफीण प्रमुख नशाना जे पदार्थो होय तेने मद्य जाणवू, अथवा आठ प्रकारना* मदना प्रसंगथी पण प्राणी धर्मकर्त्तव्यथी पतित बने छे. रात्रिदिवस तेना परवशपणाथी आरंभ-समारंभनी प्रवृत्तिमां रच्योपच्यो रहे छे अने परिणामे भवोदधिमां भटक्या करे छे.
विषय - शब्द, रूप, रस, गंध अने स्पर्श - ए पांच प्रकारनां विषयो छे. शब्द - स्त्रीओना मधुरा गीत तथा वार्तालाप सांभळी तेना प्रत्ये उद्भवती आसक्तिने अंगे
*जातिमद, रूपमद, कुळमद, ज्ञानमद, बळमद, तपमद, ऋद्धि (ऐश्वर्य) मद अने लाभमद-आ आठ प्रकारनां मदो छे, जे प्राणीओने दर्गतिरूपी ऊंडी खाईमां धकेले छे.
श्रीगच्छाचार-पयन्ना-१५