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के जे आचार्य विना फक्त गच्छर्नु नाम धारण करी विचरे छे, भ्रष्ट गच्छनी सामाचारी आचरे छे, एकलविहार करे छे, आचार्यनी आज्ञा उल्लंघे छे, शरीरनी टाप-टीप करे छे, गादी तकीया मूकीने बेसे छे, गृहस्थो पासे काम करावे छे, हाथ-पग-मुख विगेरेनुं प्रतिदिन प्रक्षालन करे छे, साबुथी वारंवार वस्त्रो धोवे छे, आवा प्रकारना वर्तनयुक्त साधुवाळा गच्छने ग्रन्थकार कहे छे के-अमे गच्छ कहेता ज नथी. आवा दुःशीलने जो साधु तरीके स्वीकारीए तो मिथ्यात्व लागे.
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श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २७९