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________________ गतिविभ्रमेङ्गिताकार- हास्यलीलाकटाक्षविक्षिप्तः । रूपावेशितचक्षुः, शलभ इव विपद्यते विवशः ॥ २ ॥ स्नानाङ्गरागवर्तिक- वर्णकधूपाधिवासपटवासैः । गन्धभ्रमितमनस्को, मधुकर इव नाशमुपयाति ॥ ३ ॥ मृष्टान्नपानमांसौ-दनादिमधुररसविषयगृद्धात्मा । गलयन्त्रपाशबद्धो, मीन इव विनाशमुपयाति ॥४ ॥ शयनासनम्बाधन-सुरतस्नानानुलेपनासक्तः । स्पर्शव्याकुलितमति-र्गजेन्द्रे इव बध्यते मूढः ॥५ ॥ एवमनेके दोषाः, प्रनष्टशिष्टेष्टदृष्टिचेष्टानाम् । दुर्नियमितेन्द्रियाणाम् भवन्ति बाधाकरा बहुशः ॥ ६ ॥ एकैकविषयसङ्गा-द्रागद्वेषातुरा विनष्टास्ते । किं पुनरनियमितात्मा, जीवः पञ्चेन्द्रियवशार्त्तः ॥७ ॥ पादाहतः प्रमदया विकसत्यशोकः, शोकं जहाति बकुलो मुखसीधुसिक्तः । आलिङ्गितः कुरबक कुरुते विकाश-मालोकितः सतिलकस्तिलको विभाति ॥८ ॥ मनोहर स्वर, सुन्दर संगीत, वाजिंत्रनो नाद अने स्त्रीना नूपुरादि आभूषणोनी ध्वनि - आ प्रकारना सुन्दर स्वर तथा तालना मिश्रणथी श्रोत्रेद्रियमां आसक्त थयेलां प्राणी हरिण माफक मृत्यु पामे छे. (१) स्त्रीओना हावभाव, अंगविकार, हास्य, नेत्रकटाक्षादिथी चलित अने रूप-लावण्यमां मुग्ध थयेल प्राणी नेत्रेंद्रियना वशवर्तीपणाथी पतंगनी माफक विनाश पामे छे. (२) चंदनरस, अंबर, धूप, कस्तूरी, पटवास, अत्तर विगेरे सुगन्धी वस्तुओने विषे जे आसक्त थाय छे ते प्राणी भ्रमरनी माफक घ्राणेंद्रियना परवशपणाथी नाश पामे छे. (३) स्वादिष्ट भोजन, मद्य-मांस तथा मिष्ट रसपानमां लुब्ध थयेलो रसनेंद्रियना वशथी गळामां यंत्रपाशबद्ध माछलीनी माफक मृत्यु पामे छे. (४) सुकोमळ शय्या, बेसवाना सुन्दर बिछाना, सुन्दर सिंहासनादिक तेमज शरीर मसळाववुं. पीठी कराववी, स्नान करीने चंदनादिकनुं विलेपन कराववुं, अत्तर लगाडवुं विगेरे स्पर्शेन्द्रियना विलासमां पडेलो प्राणी * हाथीनी माफक कष्ट पामे छे. (५) आ प्रमाणे ऊपर दर्शावेला इंद्रियोना कष्टो, जेओ केवळी भगवंते दर्शावेला मार्गने स्वीकारता नथी तेओने अनेक प्रकारे दुःखदायक थाय छे. (६) एक-एक इन्द्रियना प्रसंगथी प्राणी राग-द्वेषने अंगे विनाश पामे छे, तो जेओ पांचे इंद्रियोमां लुब्ध बन्या छे तेओने माटे तो कहेतुं शुं ? अर्थात् एक इन्द्रियनी आसक्ति प्राणीने हणवामां समर्थ छे तो पांचेनो जे उपभोग * हाथी महाबळवान होवाथी तेने वश करवा माटे युक्ति करवी पडे छे. हाथी स्पर्शमां बहुज आसक्त होय छे तेथी .तेने पकडवामां कुशळ माणस सौ-प्रथम मोटो खाडो खोदे छे, तेना ऊपर तृण वगेरेनुं आच्छादन करी तेने ढांकी दे छे. पछी 'कागळनी चितरेली के कोतरेली हाथणी ते खाडा ऊपर गोठवे छे, जेने जोईने हस्ती दूर-दूरथी खेंचाई त्यां आवे छे. जेवो. हाथणीनो स्पर्श करवा जाय छे तेवो खाड़ामां पडे छे. केटलाक दिवसो सुधी तेमां तेने भूख्यो राखी, पछी वश बनावी आलानस्तंभे लई जाय छे. श्रीगच्छाचार- पयन्ना- २७७
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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