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गीतार्थादिक साधु, काकीडा समान नीच के तुच्छ साधु, वनदेव समान आचार्य. ते गीतार्थादिक सर्वने कहे छे के-कपाय-क्लेश न करवो. सरोवरनी पाळ समान गच्छ-मर्यादा जाणवी. काकीडाने कोईए वार्या नहीं तो परिणाम महाहानिकारक आव्युं अने जळचर, स्थळचर अने खेचर प्रमुख घणा प्राणीओ विनाश पाम्या तेम जो लडता साधुने निवारवामां न आवे तो गच्छ-मर्यादानो नाश थाय अने चारित्र विनाश पामे.
आ उपरांत (१) साधुओ जो परस्पर लडे तो लोकोमा गच्छनो अपयश थाय, (२) गच्छभेदने अंगे बने पक्षना साधओ पैकी कोई राज-फरियाद करे तो राजदंड थाय (३) कलह कर्या पछी मन संतापमां पडे, चिंता रह्या करे, (४) समकितनी हानि थाय, (५) क्रोधादिकनो वेग वधतो जाय तेम तेम चारित्रनो नाश थाय. आ संबंधी विशेष विस्तार श्रीनिशीथचूर्णिना दशमा उद्देशामां छे.
कारणमकारणेणं अह, कहवि मुणीण उद्यहि कसाए । उदएवि जत्थ रुंभहि खामिज्जहि जत्थ तं गच्छम् ॥१९॥ [कारणेन अकारणेनाथ, कथमपि मुनीनां उत्तिष्ठन्ति कषायाः ।
उदयेऽपि यत्र रुन्धन्ति, क्षमयन्ति यत्र स गच्छ: ॥९९ ॥] गाथार्थ- गुरु-ग्लानादिकनी वेयावच्चादिक कारणे के वंगर कारणे पण मुनिओने जो कषायनो उदय आवे अने उदय आव्या पछी तेने रोके अने तदनन्तर खमावे तेने हे गौतम ! गच्छ जाणवो.
विवेचन-कषायो थवाना बे कारणो छे: एक बाह्य कारण अने बीजुं आंतरिक एटले कर्मोदय. बाह्य कारणमां कोईना कहेवाथी के विरूद्ध वर्तनथी कषायो थाय छे. क्रोध, मान, माया अने लोभ -ए चार मुख्य कषायो छे. तेना अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान अने संज्वलन ए चार प्रकारे दरेक कषायो गणतां सोळ कषायो थाय छे. तेमा हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा (निंदा), पुरुषवेद, स्त्रीवेद अने नपुंसकवेद - ए नव नोकषाय मेळवतां कुल पच्चीश कषाय थाय छे. ग्रंथकार कहे छे के-कषायोदय थवो ते स्वाभाविक छे पण उदयमां आव्या पछी तेने अटकाववा मिच्छामि दुक्कडं मागवो अने क्षमापना याचवी ए ज खरेखरुं कर्तव्य छे. क्षमापना- महत्त्व
आत्मा अंगारा जेवो सदा प्रज्वलित छे. अंगारा ओलवावा मांडे-तेना ऊपर राख छवावा मांडे त्यारे जो थोडो पवन नाखीए तो धीखता अंगारा ऊपरनी राख दूर थाय छे अने अंगारा पुन: सतेज बने छे. कषायो ए आवरण (राख) सदृश छे. जो तेने क्षमापनारूप पवन नाखीए तो ते कषायरूपी राख दूर थई आत्मारूपी अंगारानी अग्नि सतेज बने छे. आ छे क्षमापनानुं मूल्य ने महत्त्व, जो राखने दूर करवामां न आवे तो धीमे धीमे अंगारो बूझाई जाय छे तेवी रीते जो कषायरूपी राख दूर करवामां न आवे तो आत्मा सदन्तर कषायोथी अवराई जाय, माटे कषायनो स्हेज पण प्रवेश थाय के तरत
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २६०