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________________ [यत्र चार्यालब्ध, पतद्ग्रहाद्यपि विविधमुपकरणम् । परिभुज्यते साधुभिः, स गौतम ! कीदृशो गच्छः ? ॥९१॥] गाथार्थ- जे गच्छमां साध्वीओए मेळवेल पात्रादिक उपकरणोनो साधओ वगरकारणे उपभोग करता होय तेने हे गौतम! केवो गच्छ कहेवो? अर्थात् ते सुगच्छ नथी ज. विवेचन-साध्वीए आणेल पात्रादिक उपकरणो पण साधुए स्वीकारवानो निषेध छे तो पछी तेनो लावेल आहार तो केम ज कल्पी शके ? श्रीयतिजीतकल्पमां का छे के–“गुरुउवहिअपडिलेहे, छप्पइअअसोहिकंमि तदग्गणे। लहुया गुरुगज्जाणं, सयमेव य वस्थपायगहे ॥१॥" गुरुनी उपधि पडिलेहि नहीं, तेमां जू विगेरेनी तपास न करे तो लघुचारमासी दंड आवे अने गृहस्थ पासे वस्त्र, पात्रादिक ग्रहण करे तो चारमासी गुरुदंड लागे. साध्वीने गृहस्थ पासे वस्त्र, पात्रादिक ग्रहण करतां केवा केवा दोषो उद्भवे ते जणावतां कहे छे के–साध्वीने ए प्रमाणे ग्रहण करतो कोई नूतन श्रावक जुए तो मिथ्यात्वी बने, वळी ‘साध्वीओ तो पात्रादिकना मिषथी भाई ले छे' तेवी शंका कोईने उपजे, स्त्रीजाति स्वभावथी चंचळ होय छे तेथी तेनी साथे मैथुन-सेवननी इच्छाथी गृहस्थ वस्त्र-पात्रादिक वहोरावे अने जो तेनी इच्छानो अनादर थाय तो लोकमां हांसी करे, वळी स्त्रीजातिनुं सत्त्व (धैर्य) अल्प होय छे एटले सारा वस्त्रादिकथी लोभाई जाय छे अने तेने अंगे अकार्य करवा प्रेराय छे. वळी रूपवती साध्वीने जोईने मोह पामेल कोई गृहस्थ वशीकरणद्वारा तेने व्यामोह पण पमाडे-इत्यादिक अनेक कारणोथी शास्त्रकारे साध्वीने वस्त्र-पात्रादिक ग्रहण करवानो निषेध फरमाव्यो छे. साध्वीने वस्त्रादिक तो जोईए ज, तो तेमणे क्याथी मेळववा? ते प्रश्नना जवाबमां जणाववामां आवे छे के - तेणे पोतानी जरूरियात पोताना आचार्यने जणाववी अने आचार्य पण विधिपूर्वक साध्वीने आपे. ते विधि कई छे? ते जणावतां कहे छे के-आचार्य साध्वीने योग्य उपधि मंगावीने सात दिवस पोतानी पासे राखे, बाद कल्प करीने स्थविराने पहेरावे अने विकार न थाय तो सुंदर एवी परीक्षा करीने ते उपधि प्रवर्तनीने आपे अने ते पण योग्य विधिपुरस्सर साध्वीने आपे. जो परीक्षा कर्या विना उपधि आपे अगर तो सीधेसीधा साध्वीने आपे तो आचार्यने चारमासी गुरु प्रायश्चित लागे. प्रवर्तनीने सोंप्या सिवाय कोई साध्वीने आचार्य सीधा उपधि आदि आपे तो अन्य साध्वी विचारे के-साध्वी युवान ने रूपवती छे तेथी आचार्ये तेने वस्त्र-पात्रादिक सीधा आप्या. आवी रीते कुशंका- कारण मळे. उपधि आपवा संबंधी विस्तृत अधिकार श्रीनिशीथसूत्रना पन्दरमा उद्देशानी चूर्णिमां छे. ___ अपवादमार्ग दर्शावतां का छे के-साधुना अभावमां साध्वीए वस्त्रादिक उपकरणो ग्रहण करवां पण तेमां स्थविरानो क्रम जाळववो. जो स्थविरा साध्वी न होय तो युवती साध्वी अन्य साध्वी साथे जईने आपे. आ संबंधमां विशेष पुष्टि करतां कहे छे के अइदुल्लहभेसज्जं, बलबुद्धिविवणंपि पुट्ठिकरम् । अज्जालद्धं भुज्जइ का मेरा तत्थ गच्छम्मि ? ।।९२ ।। श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २४१
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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