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________________ छेवटे चारित्रभ्रष्टतामां परिणामे. जे भुक्तभोगी स्त्री होय ते पण अन्यनुं लिंग देखी विह्वल थई जाय छे तो जेणे कदापि लिंग देख्यु ज नथी तेवी स्त्री मनचलिता बने तेमां आश्चर्य शुं ? जो साध्वी साधु पासे कंटकादिक कढावे के आंखमांथी रज दूर करावे तो स्पर्श मात्रथी विह्वळता वधे अने पछी साध्वी कहे के-मने चकरी आवे छे, पृथ्वी फरती जणाय छे, मारा मस्तकमां पीडा थाय छे, मारा स्तन धडकवा लाग्या छे माटे मने अवलंबन आपो. आ प्रमाणे कथा-परिचय वधतां तत्काल चारित्रनो नाश थाय. बीजा पण घणा दोषो आवा प्रकारना वर्तनथी उपजे छे तेनुं विस्तृत विवेचन श्रीसुयगडांगसूत्रना “स्त्रीपरिज्ञा” नामना अध्ययनमां आपेल छे ते पैकी रोहा नामनी तापसीनी कथा जाणवा योग्य छे, जे नीचे प्रमाणेरोहा तापसीनी कथा कोई एक अजापालक (भरवाड) जांबूना वृक्ष ऊपर बेठो हतो तेवामां रोहा नामनी तापसी त्यां आवी चढी. भरवाडनुं सुंदर रूप अने भरावदार चहेरो जोईने तेने ते पसंद पड्यो एटले विचार्यु के-आ भरवाड केवो चतुर छे तेनी परीक्षा करूं. आ प्रमाणे विचारी तेणे तेनी पासे जांबूडा माग्यां, एटले अजापालके कां के ऊना आपुंके ठंडा? रोहाए का के-ऊना आप एटले भरवाडे पाकेला जांबुडां नीचे धूळमां नाख्या त्यारे तापसी तेने फूंकी फूंकीने खावा लागी अने पूछ्यु के-आ जांबुडां ऊना क्यां छे? त्यारे भरवाडे का के-जे ऊना होय ते फूंकीने ठंडा करीने खवाय. आ सांभळी रोहाए जाण्यु के-भरवाड छे तो चतुर पछी कपट करी तेने कहेवा लागी के–मारा पगमां कांटो वाग्यो छे ते तुं काढ. भरवाड नीचे उतरी कांटो काढवा लाग्यो त्यारे रोहा कंईक हसी, पण पगमां कांटो क्या हतो के निकळे? थोडीवार आमतेम तपास कर्या बाद अजापालके का के-तारा पगमां कांटो देखातो नथी. बाद रोहा ते भरवाडने पूंठ दईने बेठी अने हावभाव दर्शाववा लागी. छेवटे तेनी साथे भोग भोगवी चाली गई. आ प्रमाणे रोहाए कंटकना मिषथी अजापालकने भ्रष्ट कर्यो तेम साधु या साध्वीए परस्पर कंटकादि न कढाववा. आ संबंधे अनुलक्षीने विशेष वर्णन करतां टीकाकार कहे छे के मिच्छत्ते उड्डाहो, विराहणा फासभावसंबंधो ।। पडिगमणादी दोसा, भुत्तमभुत्ते य णेयव्वा ।।५।। दिढे संका भोइय-घाडिगणातीयगामबहियाए। चत्तारि छच्च लहुगुरु छेदो मूलं तह दुगं च ॥६॥ आरक्खियपुरिसाणं, तु साहणे पावती भवे मूलं । अणवट्टप्पो सेटठीणं, दसमं च निवस्स कथितम्मि ॥७॥ एए चेव य दोसा, असंजतीकाहिं पच्छकम्मं च । गिहिएहि पच्छकम्मं, तम्हा समणेहिं कायव्वं ॥८॥ श्रीगच्छाचार–पयन्ना- २३१
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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