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________________ उपाड्यो अने तारो पत्र झाड उपाडी लई आव्यो तो तेमां पण कंई विशेषपणुं नथी, कारण के पुराणमां का छे के-श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत पोतानी कनिष्ठा आंगळी ऊपर उपाडी लीधो हतो. एटले तें कहीं ते वात सर्व सत्य छे. बाद त्रीजा मूळदेवे पोतानी कथा आरम्भतां का के-हुं ज्यारे युवान हतो त्यारे मने स्त्री परणवानी उत्कंठा थई एटले शंकरने प्रसन्न करवा हुं चाल्यो. मारा एक हाथमां छत्र, बीजा हाथमां कमंडळ तथा भाथु लईने चाल्यो जतो हतो तेवामां एक पर्वत जेवो महान् हाथी सामो मळ्यो. तेने जोतां ज हुं डरी गयो अने कोई पण स्थळे सन्ताई जवा हुं स्थान शोधवा लाग्यो, पण मने तेवू एक पण स्थान न मळ्युं एटले कमंडळना नाळचामा हुं प्रवेशी गयो. ते हाथी पण मने मारवा माटे मारी पाछळ ते नाळचामां दाखल थई गयो. हुं भयथी पाछो कमंडळमां भरायो तो हाथी पण मारी पाछळ आव्यो एटले में आमतेम दोडी-दोडीने छ मास पर्यंत ते हाथीने भमाड्यो, पण हुं हाथमां न आव्यो. छेवटे हुं नाळचामां थईने बाहार निकळी गयो एटले हाथी पण नाळचामांथी बाहार निकळवा लाग्यो, तेवामां ते आखो निकळी गयो पण तेना पूंछडानो एक वाळ तेमां भराई गयो. हं बहार निकळी आगळ चाल्यो तो सामे ज गंगा नदी आवी. ते नदी हुं सहेलाईथी तरीने उतरी गयो अने शंकरना मंदिरमा गयो. मने अत्यंत भूख अने तरस लागी हती छतां हुं त्यां छ मास सुधी रह्यो अने गंगा पडती हती तेने मारा मस्तक पर धारण करी. आ प्रमाणे छ मास सुधी करी, मारा स्वामी शंकरने नमस्कार करीने हमणां ज हुं चाल्यो आq . कहो भाईओ, मारी वात साची के नहीं ? साची होय तो दाखला आपो अने नहीं तो बधा भूख्या धूर्ताने भोजन करावो. त्यारे बाकीना धूर्तीए कह्यं के भाई मूळदेव ! तारी वात साची ज छे. ब्रह्माना मुखथी ब्राह्मण, हाथथी क्षत्रियो, साथळमांथी वैश्यो अने पगमांथी शूद्रो निकळ्या छे. जो आटला देशोना देशो भराय तेटला ब्राह्माणादिक ब्रह्माना उदरमां समाया हता तो पछी तुं अने हाथी कमंडळमां रह्या तेमां शुं आश्चर्य ? ब्रह्मा अने विष्णु महादेवना लिंगनुं माप करवा निकळ्या अने एक हजार वर्ष पर्यंत चाल्या ज कर्या तो पण शिवना लिंगनो अंत ज न आव्यो अने छेवटे ते लिंग पार्वतीनी योनिमां समायुं तो तुं अने हाथी कमंडळमां छ मास सुधी चाल्या कर्या तेमां शुं अधिक छे? वळी तुं पूछशे के-हाथी निकळी गयो अने वाळ केम भराई गयो ? तेनुं पण पुराणमां कथन छे. जगतना कर्ता विष्णु समुद्रमा शयन करीने रह्या. तेनी नाभिमांथी कमळनाळ प्रगट्युं अने तेमांथी ब्रह्मा उपज्या. आ प्रमाणे ब्रह्मा आदि सर्व निकळ्या अने कमळ तो नाभिने वळगी रह्यं तेम तुं अने हाथी निकळी गया अने हाथीना पूंछडानो वाळ अटकी गयो ए वात बराबर छे. वळी तें का के-हाथवडे हं गंगा नदी तरी गयो, तो तेमां पण कंई असत्य नथी. रामचंद्रनो दूत हनुमान सीताने शोधवा निकळ्यो हतो त्यारे समुद्र तरीने लंका गयो हतो अने सीतानी खबर लई पाछो राम पासे आव्यो हतो. सीताए हनुमंतने तेना आगमननो मार्ग पूछ्यो त्यारे हनुमंते पोते का के-समुद्र तरीने हुं आव्यो छु.आ संबंधी श्लोक छे के–“तव प्रसादात् वचस: प्रसादात्, भर्तुश्च ते देवि! तव प्रसादात् । साधुप्रसादात्च पितुः प्रसादात्, तीर्णो मया गोपदवत्समुद्रः ।।१।।" हे देवि ! तारी कृपाथी, तारा वचनना प्रभावथी, तारा स्वामी रामचन्द्रना प्रभावथी, साधुपुरुषना श्रीगच्छाचार–पयन्ना- २१९
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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