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जह सूरो तह जीवो, भवंतरं वच्चए पुणो अत्रम् । तत्थ वि सरीरमन्नं, खित्तं व रवी पयासेइ ॥ १३ ॥ फुलुप्पलकमलाणं, चंदणअगरुण सुरहिगंधीगणम् । घिप्पड़ नासाइ गुणो, नय रुवं दीसए तेसिं ॥ १४ ॥ एवं नाणगुणेणं, घिप्पड़ जीवो वि बुद्धिमंतेहिं । जह गंधो तह जीवो, न हु सक्खा कीरए भित्तुम् ॥१५ ॥
भंभामउद्दमद्दल-पणवमकुंदाण संखसन्नाणम् । सद्दच्चिय सुव्वइ, केवलु त्ति न हु दीसइ रुवम् ॥१६ ॥ पच्चक्खं गहगहिओ, दीसइ पुरिसो न दीसड़ पिसाओ । आगरेहि मुणिज्ज, एवं जीवो वि देहट्टिओ ॥ १७ ॥।
हसइ विरुसइ रुस, नच्चड़ गाएइ रुयइ सुहदुक्खम् । जीवो देहमइगओ, विविपयारं पयंसेइ ॥ १८ ॥
जह आहारो भुत्तो, जिआण परिणमइ सत्तभेएहिं ।
वस १ सोणिय २ मंस ३-ट्ठिअ ४, मज्जा ५ तह मेय ६ सुक्केहिं ७ ॥१९॥
एवं अट्ठविहं चिअ, जीवेण अणाइसहायं कम्मम् । जह कणग पाहाणे, अणाइसंजोगनिष्फन्नम् ॥२० ॥ जीवस्य कम्मस्स य, अणाइमं चेव होड़ संजोगो । सो वि उवाएण पुढो, कीरइ न बलाउ जह कणगम् ॥२१॥ ज(इ) ह पुव्वयरं कम्मं, जीवो वा जइ हविज्ज वइ कोइ । सो वत्तव्वो कुक्कुडि-अंडाणं भणसु को पढमो ।।२२ ।। जह अंडसंभवा, कुक्कुडि त्ति अंडं च कुक्कुडिड्भवं । नय पुव्वावर भावो, जह तह कम्माण जीवाणम् ॥ २३ ॥ अणुमाणपहे सिद्धं, छउमत्थाणं जिणाण पच्चक्खम् । गिहसु गणहर ! जीवं, अणाइयं अक्खयसरूवम् ॥२४॥ कत्थ य जीवो बलिओ, कत्थ य कम्माइ हुन्ति बलियाई । जीवसम्म, पुव्वनिबद्धाइ वेराइं ॥ २५ ॥
इति जीवस्थापनकुलकम् ॥
जीव अनादिअनंत छे, एटले तेनी आदि नथी तेम अंत पण नथी, अविनाशी, अक्षय, ध्रुव- अचलायमान अने द्रव्यार्थनयवड़े नित्य अने पर्यायार्थनयवड़े अनित्य छे. चारे गतिमां जन्म, मरणादिक पर्यायो करे छे ते हेतुथी पर्यायार्थिकनयवड़े अनित्य दर्शाव्यो छे. (१) प्रतिवादी शंका
श्रीगच्छाचार- पयन्ना- २१५