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________________ गाथार्थ- -शूळ, विशूचिका के अन्य अनेक प्रकारना प्राणघातक व्याधिओ उत्पन्न थये छते जे गच्छमां मुनियो अग्निनी आरंभादिक क्रिया करता ज नथी अने अपवादरूप आवश्यक प्रसंगे यतनापूर्वक अग्निनो आरंभ साधुवेषधारी सारूपिक पासे, तेना अभावमां सिद्धपुत्र पासे, तेना अभावमां चारित्रभ्रष्ट पश्चात्कृत पासे, तेना अभावे व्रतधारी श्रावक पासे, तेना अभावे भद्रिक परिणामी अन्यदर्शनीय गृहस्थ पासे करावे तेने हे गौतम! वास्तविक गच्छ जाणवो. विवेचन - उत्सर्ग मार्ग तो एवं सूचवे छे के जीवलेण विषम व्याधिओ थाय तो पण साधु पोताना निमित्ते अग्निकायनो आरंभ करावे नहीं. साचो साधु जाणे छे के-जे वस्तु आपणे आप शकता ज नथी ते अन्य पासेथी लई लेवानो आपणने अधिकार नथी. प्राण एवी चीज छे के जे आपणे कोईने पण आपी शकता नथी तो पोताना निमित्ते अन्य जीवोनी हिंसा करवानो आपणने क्यो अधिकार छे ? आषाढाचार्ये आ नियमनो भंग कर्यो हतो तेथी तेमनी अवहेलना थई हती. वेदनीय कर्मना उदयथी व्याधिओ थाय तो तेने समभावे सहन करी ते कर्म खपाववुं ए ज श्रेष्ठ मार्ग छे; छतां पण शास्त्रकार कहे छे के कोई साधुनी सहनशक्ति सविशेष न होय, शूळ, विशूचिका जेवो अत्यंत दुःखप्रद व्याधि थयो होय अने आत्मा आर्त्त के रौद्रध्यानने वश जातो होय तेवा प्रसंगे अपवादरूपे अग्निकायनो उपयोग करवो, परंतु ते पण खप पूरतो ज अने यतना युक्त. तेना संबंधां ग्रंथकार कहे छे के-तेवा प्रसंगमां कोनी कोनी सहाय लेवी तेनो क्रम नीचे प्रमाणे जाणवो के-१ सारूपिक-माथु मुंडावे, श्वेत वस्त्र पहेरे, चोळपट्टो राखे, स्त्रीनो त्याग करे अने भिक्षा मागीने खाय ते सारूपिक कहेवाय, २ सिद्धपुत्र - स्त्री राखे अगर न राखे, सफेद वस्त्रो पहेरे, माधुं मुडांवे पण. चोटली (शिखा) राखे, पात्रा न राखे पण लोकोना गृहने विषे जईने भोजन करे, ३ पश्चात्कृत-प्रथम चारित्र ग्रहण कर्या पछी तेनो त्याग कर्यो होय तेमज वेष पण त्यजी दीधेल होय, ४ श्राद्ध- अणुव्रत स्वीकार्या होय तेवो समकिती श्रावक, ५ भद्रिक परिणामी अन्यलिंगी गृहस्थ-आ प्रमाणे एक-एकना अभावमां अन्यनी अग्निकाय संबंधमां सहाय लेवी. आ क्रिया पण यतनापूर्वक करे, एटले अग्नि मी आवे तो त्यांथी लावे, अने न मळे तो ज पोते सळगावे, इत्यादि यतनानी सविशेष विधि श्रीनिशीथसूत्रनी पीठिकामां दर्शावेल छे. हवे वनस्पतिकायना संबंधमां वर्णवतां कहे छे केपुप्फाणं बीयाणं, तयमाईणं च विविहदव्वाणं । संघट्टणपरिआवण, जत्थ न कुज्जा तयं गच्छम् ॥८१ ॥ [ पुष्पानां बीजानां, त्वगादीनां च विविधद्रव्याणाम् । सङ्घट्टनं परितापनं, यत्र न कुर्यात् स गच्छः ||८१ ।।] गाथार्थ-पुष्प बीज तथा वृक्षादिकना मूळ, पत्र, अंकुर, फल, छाल प्रमुख सचित वस्तुनो संघट्ट के परिताप आदि जे गच्छमां मुनिओ न करे ते ज गच्छने प्रमाण मानवो. विवेचन - बे प्रकारना पुष्पो होय छे. एक जळमां अने बीजा स्थळमां उत्पन्न थनारा. कमळ विगेरे जळमां अने कोरंटकादिक स्थळमां थाय छे. स्थळमां थनारा पुष्पोनां पण बे प्रकार छे. (१) श्रीगच्छाचार—पयन्ना- २०८
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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